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________________ अध्याय-7 पूजन-महापूजन प्राचीन या अर्वाचीन? शंका- भक्ति सूत्र रूप काव्य रचनाओं पर पूजन पढ़ा सकते हैं? समाधान- काव्य रचना या भक्ति सूत्र भी एक प्रकार की परमात्म पूजा है। इनका समावेश भाव पूजा में होता है। सुविहित आचार्यों द्वारा रचित एवं मान्यता प्राप्त भक्ति सूत्रों पर पूजन आदि करवाएं जा सकते हैं। जैसे कि भक्तामर महापूजन, जयतिहुअण महापूजन, नमिऊण महापूजन आदि। स्वमति के अनुसार किसी भी नए पूजन का निर्माण या प्रचलन करना अनुचित है। शंका- वर्तमान प्रचलित कुमारपाल महाराजा की आरती कितनी औचित्यपूर्ण है? समाधान- ऐतिहासिक साक्ष्यों के अनुसार कुमारपाल महाराजा बहुत ही भव्य रूप में नगरवासियों के साथ परमात्मा की आरती करने जाते थे। उसी का अनुकरण करते हुए वर्तमान में कुमारपाल राजा की आरती का प्रचलन बढ़ गया है। परंतु यदि यथार्थ का अन्वेषण किया जाए तो हम मात्र आडम्बर एवं वस्त्राभूषण आदि में ही उनका अनुसरण करते हैं जबकि इसका मुख्य ध्येय कुमारपाल महाराजा के समान बनने का होना चाहिए। किसी भी व्यक्ति को मात्र चढ़ावे के आधार पर कुमारपाल बनाने से महापुरुषों का अवमूल्यन होने की संभावना रहती है। जो व्यक्ति कुमारपाल बना है वह यदि मेकअप के लिए ब्यूटी पार्लर जाता है और हिंसक सौंदर्य प्रसाधनों का प्रयोग करता है तो फिर वह कुमारपाल का प्रतिरूप कैसे बन सकता है? वह तो जीव दया के मुख्य सिद्धान्त को ही गौण कर रहा है। यदि चढ़ावा लेने वाले की सामाजिक साख या व्यवहार अच्छा न हो तो यह जन हिलना का भी कारण बन सकता है। ऐसे आयोजन यदि पूर्ण विवेक एवं उपयोगपूर्वक किए जाएं तो यह महती शासन प्रभावना में हेतुभूत बन सकते हैं। इनके द्वारा श्रावकों के समक्ष एक उच्च आदर्श प्रस्तुत किया जा सकता है वहीं अन्य धर्मियों के मन में जिनधर्म के प्रति
SR No.006260
Book TitleShanka Navi Chitta Dharie-Shanka, Samadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages152
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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