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________________ जैन धर्म की श्वेताम्बर परम्परा में प्रचलित तप-विधियाँ...31 पूर्वानुपूर्वी - इसमें सर्वप्रथम एक उपवास करके पारणा करें, फिर दो उपवास करके पारणा करे, फिर एक उपवास करके पारणा करें। तत्पश्चात क्रमश: तीन, दो, चार, तीन, पाँच, चार, छ:, पाँच, सात, छः, आठ, सात, नौ, आठ, दस, नौ, ग्यारह, दस, बारह, ग्यारह, तेरह, बारह, चौदह, तेरह, पन्द्रह, चौदह, सोलह और फिर पन्द्रह उपवास करके पारणा करें। ___पश्चानुपूर्वी – उसके बाद पश्चानुपूर्वी से उपवास करें। सर्वप्रथम सोलह उपवास, फिर चौदह उपवास, फिर पन्द्रह, तेरह, चौदह, बारह, तेरह, ग्यारह, बारह, दस, ग्यारह, नौ, दस, आठ, नौ, सात, आठ, छ:, सात, पाँच, छ:, चार, पाँच, तीन, चार, दो, तीन, एक, दो और अन्त में एक उपवास करके पारणा करें। इस प्रकार हर एक के बाद पारणा करें। इस तप में 497 उपवास एवं 61 पारणा कुल मिलाकर 1 वर्ष, 6 माह, 18 दिनों में यह तप पूरा होता है। इस तप की चारों परिपाटी में 6 वर्ष, 2 महिने, 12 दिन लगते हैं। उद्यापन - इस तप की निर्विघ्न पूर्णाहुति के मंगल कलश के रूप में बृहत्स्नात्र पूजा करनी चाहिए। उपवास की संख्या के अनुसार प्रभु के सामने पुष्प, फल और नैवेद्य आदि चढ़ाने चाहिए। साधर्मी वात्सल्य एवं संघ पूजा करनी चाहिए। • जीतव्यवहार के अनुसार इस तप की श्रेष्ठ आराधना के लिए 'नमो अरिहंताणं' पद की 20 माला तथा साथिया आदि 12-12 करने चाहिए। स्पष्ट यन्त्र यह है - साथिया खमासमण कायोत्सर्ग ___ 12 12 12 माला 20
SR No.006259
Book TitleSajjan Tap Praveshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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