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जैन धर्म की श्वेताम्बर परम्परा में प्रचलित तप-विधियाँ...29
पारणा, पश्चात दो उपवास कर पारणा, चार उपवास कर पारणा, तीन उपवास कर पारणा, फिर क्रमश: पाँच-चार, छह-पाँच, सात-छह, आठ-सात और नौआठ इस प्रकार उपवास करके पारणा किया जाता है।
तत्पश्चात पश्चानुपूर्वी से उपवास करें अर्थात पहले नौ उपवास, फिर सात, फिर आठ, उसके बाद क्रमश: छह-सात, पाँच-छह, चार-पाँच, तीनचार, दो-तीन, एक- दो और फिर एक उपवास करके पारणा करें।
इस तप में 154 उपवास और 33 पारणे कुल मिलाकर इस तप की एक परिपाटी में 6 माह और 7 दिन लगते हैं। चारों परिपाटी में 2 वर्ष और 28 दिन लगते हैं।
इस तप का यन्त्र न्यास इस प्रकार है -
उपवास
लघुसिंह उपवास निष्क्रीडित
पारणा दिन
तप के दिन
तपस्या काल
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चार परिपाटी के पारणे 132 एक परिपाटी के पारणे 13 चार परिपाटी के तपो दिन 18 मास, 16 दिन एक परिपाटी के तपो दिन 5 मास, 4 दिन चार परिपाटी का काल 2 वर्ष, 28 दिन एक परिपाटी का काल 6 मास, 7 दिन
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उद्यापन - इस तप की पूर्णाहुति होने पर जिनेश्वर परमात्मा के उपकारों की स्मृति निमित्त बृहत्स्नात्र पूजा करनी चाहिए। उपवास की संख्या के अनुसार पुष्प, नैवेद्य एवं फल चढ़ाने चाहिए। साधर्मीवात्सल्य एवं संघपूजा करनी चाहिए।