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________________ परिशिष्ट-I...257 सर्वसाधुभ्यः' कहकर चौथी स्तुति कहें) सिद्धायिका देवी, वारे विघन विशेष सहु संकट चूरे, पूरे आश अशेष। अहोनिश कर जोड़ी, सेवे सुर नर इन्द जंपे गुण गण इम, जिनलाभसूरींद।।4।। . • अब नीचे बैठकर बायाँ घुटना ऊँचा करके ‘णमुत्थुणं' बोलें... णमुत्थुणं णमुत्थुणं अरिहंताणं भगवंताणं।।1।। आइगराणं, तित्थयराणं सयं संबुद्धाणं।।2।। पुरिसुत्तमाणं, पुरिससीहाणं, पुरिसवर पुंडरियाणं, पुरिसवर गंधहत्थीणं।।3।। लोगुत्तमाणं, लोगनाहाणं, लोगहियाणं, लोगपइवाणं, लोगपज्जो अगराणं।।4।। अभयदयाणं, चक्खुदयाणं, मग्गदयाणं, सरणदयाणं, बोहिदयाणं।।5।। धम्मदयाणं, धम्मदेसियाणं, धम्मनायगाणं, धम्मसारहीणं, धम्मवर चाउरंत चक्कवट्टीणं।।6।। अप्पडिहय वर नाण दंसण घराणं, विअट्टच्छउमाणं।।7।। जिणाणंजावयाणं, तिन्नाणं-तारयाणं, बुद्धाणं-बोहयाणं, मुत्ताणं-मोअगाणं।।8।। सव्वनूणं, सव्वदरिसीणं, सिव-मयल-मरुअ-मणंत-मक्खय-मव्वाबाहमपुणरावित्ति सिद्धिगइ नामधेयं ठाणं संपत्ताणं, नमो जिणाणं जिअभयाणं।।9।। जे अ अईआ सिद्धा, जे अ भविस्संति णागए काले। संपइ अ वट्टमाणा, सव्वे तिविहेण वंदामि।।10।। जावंति चेइयाई, उड्ढे अ अहे अ तिरिअ लोए । सव्वाई ताई वंदे, इह संतो तत्थ संताई।।1।। 'इच्छामि खमासमणो वंदिउं जावणिज्जाए निसीहिआए मत्थएण वंदामि' कहकर एक 'खमासमणा' लगाएं। तत्पश्चात जावंत केवि साहू, भरहे रवय महाविदेहे । सव्वेसिं तेसिं पणओ, तिविहेण तिदंड विरयाणं।।2।। 'नमोऽर्हत्सिद्धाचार्योपाध्याय सर्वसाधुभ्यः' इतना कहकर स्तवन बोलें..
SR No.006259
Book TitleSajjan Tap Praveshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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