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________________ 256...सज्जन तप प्रवेशिका अन्नत्थ ऊससिएणं, नीससिएणं, खासिएणं, छीएणं, जंभाइएणं, उड्डएणं, वायनिसग्गेणं, भमलिए, पित्तमुच्छाए।।1।। सुहुमेहि अंगसंचालेहिं, सुहुमेहिं खेलसंचालेहिं, सुहुमेहिं दिट्ठिसंचालेहि।।2।। एवमाइएहिं, आगारेहिं, अभग्गो, अविराहिओ, हुज्ज मे काउसग्गो।।3।। जाव अरिहंताणं, भगवंताणं, णमुक्कारेणं न पारेमि।।4।। ताव कायं, ठाणेणं, मोणेणं, झाणेणं, अप्पाणं वोसिरामि।।5।। (एक नवकार का कायोत्सर्ग करें। फिर ‘णमो अरिहंताणं' बोलकर तीसरी स्तुति कहें) अरथे करी आगम, भाख्यां श्री भगवंत गणधर ते गुथ्यां, गुणनिधि ज्ञान अनंत। सुरगुरु पण महिमा, कही न शके एकंत समरूं सुखसायर, मन शुद्ध सूत्र सिद्धान्त।।3।। सिद्धाणं बुद्धाणं सिद्धाणं बुद्धाणं, पारगयाणं, परंपर गयाणं। लोअग्ग मुवगयाणं, नमो सया सव्व सिद्धाणं।।1।। जो देवाण वि देवो, जं देवा पंजलि नमसंति। तं देव-देव महिअं, सिरसा वंदे महावीरं।।2।। इक्कोवि नमुक्कारो, जिणवर-वसहस्स वद्धमाणस्स। संसार सागराओ, तारेइ नरं व नारि वा।।3।। उज्जित सेल सिहरे, दिक्खानाणं निसीहिआ। जस्स तं धम्म चक्कवट्टि, अरिट्टनेमि नमसामि।।4।। चत्तारि अट्ठ दस दोय, वंदिआ जिणवरा चउवीसं। परमट्ठ निटिअट्टा, सिद्धा सिद्धिं मम दिसंतु।।5।। वेयावच्चगराणं, संतिगराणं, सम्मदिट्ठि समाहिगराणं। करेमि काउस्सग्गं। अन्नत्थ ऊससिएणं, नीससिएणं, खासिएणं, छीएणं, जंभाइएणं, उड्डएणं, वायनिसग्गेणं, भमलिए पित्तमुच्छाए।।1।। सुहुमेहिं अंगसंचालहिं, सुहुमेहिं खेलसंचालेहि, सुहुमेहिं दिट्ठिसंचालेहि।।2।। एवमाइएहिं आगारेहिं, अभग्गो, अविराहिओ, हुज्ज मे काउसग्गो।।3।। जाव अरिहंताणं, भगवंताणं, णमुक्कारेणं न पारेमि।।4।। ताव कायं, ठाणेणं, मोणेणं, झाणेणं, अप्पाणं वोसिरामि।।5।। (एक नवकार का कायोत्सर्ग करके 'नमोऽर्हत्सिद्धाचार्योपाध्याय
SR No.006259
Book TitleSajjan Tap Praveshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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