SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 311
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ परिशिष्ट-I...249 लोगस्स लोगस्स उज्जोअगरे, धम्मतित्थयरे जिणे। अरिहंते कित्तइस्सं, चउवीसंपि केवली।।1।। उसभ मजिअंच वन्दे, संभव मभिणंदणंच, सुमई च। पउमप्यहं सुपासं, जिणंच चंदप्पहं वंदे।।2।। सुविहिं च पुष्पदंतं, सीअल सिज्जंस वासुपुज्जं च। विमल मणंतं च जिणं, धम्म संतिं च वंदामि।।3।। कुंथु अरं च मल्लि वंदे, मुणिसुव्वयं नमि जिणं च। वंदामि रिट्ठनेमि, पासं तह वद्धमाणं च ।।4।। एवं मए अभिथुआ, विहुय रयमला पहीण जरमरणा। चउवीसंपि जिणवरा, तित्थयरा मे पसीयंतु।।5।। कित्तिय वंदिय महिया, जे अ लोगस्स उत्तमा सिद्धा। आरुग्ग बोहिलाभ, समाहि वर मुत्तमं दितु।।6।। चंदेसु निम्मलयरा, आइच्चेसु अहियं पयासयरा, सागरवर गंभीरा, सिद्धा सिद्धिं मम दिसंतु।।7।। • अब नीचे बैठकर पुनः 'इच्छामि खमासमणो वंदिउं जावणिज्जाए निसीहिआए मत्थएण वंदामि' कहकर खमासमणा दें। फिर बायाँ घुटना ऊँचा करके 'इच्छाकारेण संदिसह भगवन्, चैत्यवन्दन करूं? इच्छं' ऐसा कहकर चैत्यवंदन करें। चैत्यवंदन आदि देव अरिहंत नमुँ, समरूं तारूं नाम । ज्यां-ज्यां प्रतिमा जिनतणी, त्यां त्यां करूं प्रणाम ।।1।। शत्रुजे श्री आदिदेव, नेम नमुं गिरनार । तारंगे श्री अजितनाथ, आबु ऋषभ जुहार ।।2।। अष्टापद गिरी उपरे, जिन चौविशे जोय । मणिमय मूरति मानशुं, भरत भरावी सोय ।।3।। समेत शिखर तीरथ बड़ो, जिहां विशे जिन राय । वैभार गिरिवर ऊपरे, श्री वीर जिनेश्वर राय ।।4।। मांडवगढ़ नो राजियो, नामे देव सुपास । ऋषभ कहे जिन समरतां, पहोते मननी आश ।।5।। जं किंचि जं किंचि नाम तित्थं, सग्गे पायालि माणुसे लोए। जाइं जिण बिंबाइं, ताइं सव्वाइं वंदामि
SR No.006259
Book TitleSajjan Tap Praveshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy