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जैन धर्म की श्वेताम्बर परम्परा में प्रचलित तप-विधियाँ...245
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22. वृंदारक 26. महायशा 30. पुष्पकेतु 23. चंद्रातप 27. उष्मांक 31. कामदेव 24. चित्रगुप्त ___28. प्रद्युम्ननाथ 32. समरकेतु 25. दृढ़रथ 29. महातेज
पुष्करा] पश्चिमार्थ महाविदेहे 1. प्रसन्नचंद्र 12. भीमनाथ 23. ब्रह्मभूति 2. महासेन 13. मेरुप्रभु
. हितकर 3. वज्रनाथ 14. भद्रगुप्त
25. वरुणदत्त 4. सुवर्णबाहु 15. सुट्टढसिंह 26. यश:कीर्ति 5. कुरुचंद्र 16. सुव्रतनाथ 27. नागेंद्र 6. वज्रवीर्य 17. हरिश्चंद्र
28. महीधर 7. विमलचंद्र 18. प्रतिमाधर 29. कृतबह्म 8. यशोधर 19. अतिश्रय 30. महेन्द्र 9. महाबल 20. कनककेतु 31. वर्धमान 10. वज्रसेन 21. अजितवीर्य 32. सुरेंद्रदत्त 11. विमलनाथ
22. फल्गुमित्र जैन धर्म की श्वेताम्बर मूर्तिपूजक खरतरगच्छ, तपागच्छ, पायछंदगच्छ, त्रिस्तुतिकगच्छ आदि परम्पराओं में उपर्युक्त सभी तपों को प्रायः स्वीकार किया गया है, यद्यपि सभी तप वर्तमान में प्रचलित नहीं है। संघयण बल के ह्रास होने के कारण आगमोक्त कनकावली, रत्नावली, भिक्षु प्रतिमा, भद्रोत्तर आदि दीर्घ अवधि वाले तप शनैः शनैः व्युच्छिन्न हो गये हैं। इच्छुक साधक देहबल क्षीण होने से इन तपों को चाहकर भी नहीं कर सकते। शेष मध्यम और जघन्य तप न्यूनाधिक रूप से सर्वत्र प्रचलित है। ___सामान्यत: जैन शास्त्रों में बाह्य तप का विस्तृत वर्णन प्राप्त होता है। काल-सापेक्ष अनेक तप भिन्न-भिन्न समय में प्रचलन में आए। कुछ का उद्देश्य लौकिक रहा तो कुछ का लोकोत्तर। तप कर्म निर्जरा का प्रमुख साधन होने से इसे आचरित करने के अनेकश: मार्ग बताए गए ताकि किसी न किसी मार्ग से व्यक्ति लक्ष्य तक पहुँच सके। आद्योपरान्त जैनाचार्यों द्वारा शताधिक तपों का