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________________ 226...सज्जन तप प्रवेशिका F G o = 81 आयंबिल करने पर यह तप पूर्ण होता है। नियम - इस तप में प्रतिदिन 1. ब्रह्मचर्य का पालन करें 2. उभय सन्ध्याओं में प्रतिक्रमण करें 3. त्रिकाल संध्याओं में देववन्दन करें 4. प्रतिदिन क्रमश: एक-एक पद की क्रिया करें 5. जिस पद के जितने गुण हों उतने साथिया, खमासमण, कायोत्सर्ग आदि करें 6. प्रतिदिन स्नात्रपूजा-अष्टप्रकारी पूजा करें तथा 7. नवपद के गुणों का कीर्तन करें। . गीतार्थ परम्परानुसार नवपद तप में क्रमश: निम्नलिखित जापादि करें - जाप साथिया | खमा. | कायो. माला | 1. ॐ ही नमो अरिहंताणं | 12 | 12 | 12 | 20 2. ॐ ही नमो सिद्धाणं 3. ॐ ही नमो आयरियाणं ॐ ह्रीँ नमो उवज्झायाणं ॐ ह्रौं नमो लोए सव्वसाहूर्ण 6. ॐ ही नमो दंसणस्स | 7. ॐ हीं नमो नाणस्स 8. ॐ ह्रीं नमो चारित्तस्स |9. ॐ ह्रीं नमो तवस्स। 50 | 50 33. एक सौ आठ पार्श्वनाथ तप यह तप 23वें तीर्थंकर प्रभु पार्श्वनाथ के 108 नामों की अपेक्षा आत्मकल्याण के उद्देश्य से किया जाता है। इस तप में भगवान पार्श्वनाथ के विभिन्न अतिशयों की आराधना की जाती है। वर्तमान में यह तप खूब प्रचलित है। विधि- प्रचलित परम्परानुसार इस तपाराधना में यथाशक्ति 108 उपवास, आयम्बिल, नीवि या एकासना करें। यह तप निरन्तर भी किया जा सकता है और पृथक्-पृथक् दिनों में भी। उद्यापन- तप के आदि, मध्य या अन्त में स्नात्र पूजा रचायें तथा 108108 अष्टप्रकारी सामग्री चढ़ायें। • इस तप में अरिहंत पद की आराधना करते हुए निम्न जाप आदि करें। साथिया खमा. कायो. माला 12 12 12 20
SR No.006259
Book TitleSajjan Tap Praveshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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