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________________ जैन धर्म की श्वेताम्बर परम्परा में प्रचलित तप-विधियाँ...225 यह तप खूब प्रचलित है। विधि- तपसुधानिधि (पृ. 310) के अनुसार यह तप कार्तिक कृष्णा दशमी से वैशाख शुक्ला दशमी तक किया जाता है अथवा पर्युषण पर्व के दिनों में या किसी भी दिन किया जा सकता है। इस तप में एक अट्ठम (तेला) करें। चौथे दिन मुनि को उड़द बाकुले का दान देकर स्वयं भी उसी द्रव्य से पारणा करें। पारणे के दिन आयंबिल का प्रत्याख्यान ठाम चौविहार पूर्वक करना आवश्यक है। • इस तप में तीनों दिन भगवान महावीर का जाप आदि करें। जाप साथिया खमा. कायो. माला श्री महावीर स्वामी नाथाय नमः 12 12 12 20 32. नवपदओली तप जैन परम्परा में नवपद ओली का विशिष्ट स्थान है। यह सिद्धचक्र ओली के नाम से भी प्रसिद्ध है। इस तप के द्वारा देव, गुरु व धर्म की आराधना स्वयमेव हो जाती है क्योंकि नवपद के प्रारम्भिक दो पदों में देवतत्त्व, अग्रिम तीन पदों में गुरुतत्त्व तथा अन्तिम चार पदों में धर्मतत्त्व समाविष्ट है। इस तप का महत्त्व इसलिए भी है कि बीस स्थानकों एवं तीर्थंकर नामकर्म उपार्जन के 16 कारणों में भी नवपद समाहित है। नवपद की आराधना से मोक्ष पद तो उपलब्ध होता ही है किन्तु ऋद्धि-समृद्धि-यश- प्रसिद्धि- शारीरिक निरोगता आदि की भी प्राप्ति होती है। इस सम्बन्ध में श्रीपाल राजा और मयणासुन्दरी का कथानक जैन समाज में प्राय: सब जानते हैं। विधि- यह तप आश्विन शुक्ला 7 के दिन से प्रारम्भ कर आश्विन शुक्ला पूर्णिमा तक नौ दिन तथा चैत्र शुक्ला 7 के दिन से प्रारम्भ कर चैत्र पूर्णिमा तक नौ दिन आयंबिल करके किया जाता है। ___ इसमें प्रथम दिन चावल की वस्तुएँ, दूसरे दिन गेहूँ की वस्तुएँ, तीसरे दिन चने की वस्तुएँ, चौथे दिन मूंग की वस्तुएँ, पाँचवें दिन केवल उड़द की वस्तुएँ तथा छठे, सातवें, आठवें और नौवें दिन केवल चावल की वस्तुएँ खाकर आयंबिल करना चाहिए। इसमें वर्ण के अनुसार खाद्य वस्तुओं का सेवन किया जाता है, इसलिए इसे वर्ण की ओली भी कहते हैं। यदि ऐसा करने की शक्ति न हो तो सामान्य रीति से आयंबिल करें। इस प्रकार साढ़े चार वर्षों में नौ ओली
SR No.006259
Book TitleSajjan Tap Praveshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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