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________________ 218...सज्जन तप प्रवेशिका द्वितीय ओली में - अनुक्रम से नीवि, आयंबिल, उपवास और एकासना करें। तृतीय ओली में - अनुक्रम से आयंबिल, उपवास, एकासना और नीवि करें। चतुर्थ ओली में - अनुक्रम से उपवास, एकासना, नीवि और . आयंबिल करें। पंचम ओली में - अनुक्रम से उपवास, एकासना, नीवि और आयंबिल करें। इस प्रकार यह तप बीस दिनों में पूर्ण होता है और तीन वर्ष तक किया जाता है। उद्यापन - इस तप के पूर्ण होने पर पाँच जप माला, पाँच स्थापनाचार्य, पाँच रत्नमय जिनबिम्ब, अष्टप्रकारी पूजा सामग्री आदि चढ़ायें। रत्नत्रय की विशिष्ट आराधना करें। • प्रचलित सामाचारी के अनुसार इस तपोयोग में अरिहन्त पद की आराधना करें - जाप साथिया खमा. कायो. माला ॐ नमो अरिहंताणं 12 12 12 20 20. बृहत् संसारतारण तप | संसार रूपी महासागर से तिरने के लिए जो तप किया जाता है, उसे बृहत संसारतारण-तप कहते हैं। जैनाचार्यों ने इस तप का निरूपण पूर्वोक्त प्रयोजन को ही ध्येय में रखकर किया है। इसकी प्रचलित विधि यह है - ... इस तप में क्रमश: तीन अट्ठम आयंबिल के पारणे पूर्वक करें। इस प्रकार यह तप 9 उपवास और 3 आयंबिल कुल बारह दिनों में पूर्ण होता है। उद्यापन - इस तप के अन्तिम दिन में चौड़े बर्तन में दूध भरकर उसमें चाँदी की नौका तिरायें। नाव में चाँदी के सिक्के, मोती, प्रवाल आदि डालें। परमात्मा की पूजा पढ़ायें और ज्ञान पूजा करें। • प्रचलित मान्यतानुसार इस तप साधना में निम्नलिखित जाप-कायोत्सर्ग आदि करें।
SR No.006259
Book TitleSajjan Tap Praveshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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