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________________ जाप जैन धर्म की श्वेताम्बर परम्परा में प्रचलित तप-विधियाँ...217 उद्यापन - गणधर मूर्ति की पूजा करें। यदि गणधर प्रतिमा न हो तो मूलनायक प्रतिमा की स्नात्र पूजा रचायें। 10-10 की संख्या में नैवेद्य, फल आदि चढ़ायें। प्रत्येक दिन आँगी रचना करें। • इस तपोयोग में निम्नांकित जापादि करें साथिया खमा. कायो. माला ॐ पार्श्वनाथ गणधराय नमः 14 14 14 20 18. दूज तिथि तप किसी भी श्रेष्ठ कार्य हेतु शुक्ल पक्ष श्रेष्ठ माना गया है अत: यह तप शुक्ल पक्षीय द्वितीया के दिन किया जाता है। यह तिथि ज्ञान तिथि मानी गयी है। इसलिए इस तप में ज्ञान प्रधान पाँच सूत्रों का जाप करते हैं। इस तप के करने से अपूर्व श्रुत एवं सम्यक् ज्ञान की प्राप्ति होती है। विधि - यह तप कार्तिक शुक्ला द्वितीया से शुरू करके जघन्य से 22 मास तथा उत्कृष्ट से 22 वर्ष पर्यन्त प्रत्येक मास में शुक्ल दूज के दिन चौविहार उपवास करें। इस प्रकार यह तप 22 महीना या 22 वर्षों में पूर्ण होता है। उद्यापन - इस तप का उद्यापन यथाशक्ति पंचमी तप की तरह करना चाहिए। • प्रचलित सामाचारी के अनुसार इस तप में निम्न जापादि करें साथिया खमा. कायो. माला 1. ॐ नन्दीसूत्राय नमः 51 51 51 20 2. ॐ अनुयोगद्वारसूत्राय नमः 62 6 262 20 19. रत्नरोहण तप मोक्ष रूपी रत्न के मार्ग पर आरोहण करने के उद्देश्य से यह तप किया जाता है। तपसुधानिधि में इसकी निम्न विधि दी गयी है - यह तप आश्विन शुक्ला पंचमी से शुरू करके इसमें चार-चार दिन की पाँच ओली करें प्रथम ओली में - पहले दिन एकासना, दूसरे दिन नीवि, तीसरे दिन आयंबिल एवं चौथे दिन उपवास करें। जाप
SR No.006259
Book TitleSajjan Tap Praveshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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