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________________ जैन धर्म की श्वेताम्बर परम्परा में प्रचलित तप - विधियाँ... 209 ॐ राजप्रश्नीय सूत्राय नमः ॐ जीवाजीवाभिगम सूत्राय नमः ॐ प्रज्ञापनोपांग सूत्राय नमः ॐ सूर्यप्रज्ञप्ति सूत्राय नमः ॐ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति सूत्राय नमः ॐ चन्द्रप्रज्ञप्ति सूत्राय नमः ॐ कल्पावतंस सूत्राय नमः ॐ निरयावलि सूत्राय नमः ॐ पुष्पचूलिका सूत्राय नमः ॐ वह्निदशोपांग सूत्राय नमः ॐ पुष्पिकोपांग सूत्राय नमः 42 10 36 57 50 50 10 10 10 10 10 - 35. 36. 37. 38. 39. 40. 41. 42. 43. 44. 45. 11. तेरहकाठिया तप सुकृत कार्यों में रुकावट डालने वाली प्रवृत्तियों एवं स्थितियों को काठिया शब्द से सम्बोधित किया गया है। जैन ग्रन्थों में ऐसे अवरोधक तत्त्व तेरह बतलाये गये हैं 1. आलस्य, 2. मोह, 3. अवज्ञा, 4. मान, 5. क्रोध, प्रमाद, 7. कृपणता, 8. भय, 9. शोक, 10. अज्ञान, 11 व्याक्षेप, 12. कुतूहल और 13. विषय | 6. 42 10 36 57 50 50 10 10 10 10 10 22222222222 42 20 10 20 36 20 57 20 50 20 50 20 10 20 10 20 20 20 10 20 10 20 - यह तप इन तेरह काठियों के निवारण के लिए किया जाता है। इस तप का दूसरा नाम 'छूटा अट्ठम' है, क्योंकि इसमें यशाशक्ति 13 अट्ठम किये जाते हैं। वर्तमान में इसकी निम्न विधि प्राप्त होती है पारणा इसमें सर्वप्रथम अट्ठम कर एकासना से पारणा करें। उसमें सिर्फ लापसी ही ग्रहण करें तथा ठाम चौविहार के प्रत्याख्यान करें। फिर पुनः एक अट्ठम करें और में एकासना करते हुए सिर्फ गेहूँ की रोटी ग्रहण करें। इसी तरह तेरह काठियों का विघात करने के लिए प्रत्येक के निमित्त एक - एक अट्ठम करें और पारणे के दिन एकासना करें। यहाँ एकासना के सम्बन्ध में खास यह है कि जैसे पहले अट्ठम के पारणे में मात्र लापसी ग्रहण की जाती है, दूसरे अट्ठम के पारणे में गेहूँ की रोटी ग्रहण की जाती है वैसे ही तीसरे अट्ठम के पारणे में चावल मिश्रित दूध की खीर ग्रहण करें। चौथे अट्ठम का पारणा अपने किसी सगे
SR No.006259
Book TitleSajjan Tap Praveshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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