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________________ जैन धर्म की श्वेताम्बर परम्परा में प्रचलित तप-विधियाँ...199 जाप साथिया खमा. कायो. | माला | 17 1. श्री समकित पारंगताय नमः 2. श्री अक्षय समकिताय नमः 3. श्री समकित निधिनाथाय नमः 4. श्री केवलज्ञानी नाथाय नमः 5. श्री एकत्व गताय नमः 6. श्री स्वर्गनिधि नाथाय नमः 7. श्री गौतमलब्धि नाथाय नमः 8. श्री अक्षयनिधि नाथाय नमः 9. श्री प्रव्रजाय नमः 10. श्री मुनिसुव्रताय नमः 5. अट्ठाईसलब्धि तप __ आत्मा की शक्ति विशेष को लब्धि कहते हैं अथवा विशिष्ट प्रकार से एकत्रित हुई शक्ति भी लब्धि कहलाती है। यह लब्धि तपश्चरण से प्राप्त होती है। यदि जिनशासन की महती प्रभावना करने हेतु अथवा धर्म संघ पर आये संकट का निवारण करने हेतु तो लब्धिधारी मुनि स्वलब्धि का प्रयोग करते हैं। चेतना अनन्त शक्तियों का पुञ्ज है इसलिए लब्धियाँ भी अनेक हो सकती हैं। तदुपरान्त मुख्य रूप से 28 लब्धियों का उल्लेख किया गया है। उनका सामान्य विवरण इस प्रकार है___1. आमौषधि लब्धि- हाथ, पैर आदि किसी भी अवयवों के स्पर्श मात्र से सर्व प्रकार की व्याधियों का नष्ट हो जाना, आमर्षोंषधि लब्धि है। 2. विगुडौषधि लब्धि- मल-मूत्र का स्पर्श करने या लगाने मात्र से किसी भी प्रकार के रोग को नष्ट कर देना, विपुडौषधि लब्धि है। 3. खेलौषधि लब्धि- थूक, मैल आदि के स्पर्श मात्र से सब व्याधियाँ शान्त कर देना, खेलौषधि लब्धि है। 4. जल्लौषधि लब्धि- शरीर के पसीने से सब प्रकार की व्याधियाँ शान्त कर देना, जल्लौषधि लब्धि है। 5. सौषधि लब्धि- शरीर के प्रत्येक अंग-उपांग जैसे केश, नख, रोम
SR No.006259
Book TitleSajjan Tap Praveshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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