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182...सज्जन तप प्रवेशिका
सातवें वर्ष के उद्यापन में तीर्थंकर माताओं के आगे सप्तमी के दिन तेल, अष्टमी को घी, नवमी को पकवान, दशमी को गाय का दूध, एकादशी को दही, द्वादशी को गुड़, त्रयोदशी को खिचड़ी, बड़ी, कनिक (आटा), हरड़, धनिया, मेथी, गोंद, नेत्राञ्जन, सलाई, सात-सात पान, सुपारी आदि रखें। पुत्रवती श्राविका को श्रीफल प्रदान करें। साधर्मी वात्सल्य एवं संघपूजा करें।
• गीतार्थ आज्ञानुसार इस तप के दिनों में प्रतिदिन निम्नोक्त संख्या में कायोत्सर्ग आदि करेंजाप
साथिया खमा. कायो. माला श्री जिनमात्रे नमः 24 24 24 20 12. सर्वसुखसम्पत्ति तप
समस्त प्रकार के सुखों एवं सम्पत्तियों को उपलब्ध कराने में निमित्त भूत होने से यह तप सर्वसुखसम्पत्ति तप कहलाता है। इस तप का उद्देश्य सर्व प्रकार के सुखों को अनुभूति के स्तर पर रेखांकित करना है। यह तप गृहस्थ वर्ग के लिए ही आराध्य है। मतान्तर से इस तप की तीन विधियाँ प्राप्त होती हैं। प्रथम प्रकार
तहा एगा पडिवया, दुन्नि दुइज्जाओ, तिन्नि तिज्जाओ, एवं जाव पंचदसीओ उववासा भवंति जत्थ सो। विधिमार्गप्रपा, पृ. 26
विधिमार्गप्रपा के अनुसार कृष्ण अथवा शुक्ल पक्षीय किसी भी शुभ प्रतिपदा को यह तप प्रारम्भ करें। फिर उस प्रतिपदा (एकम) के दिन एक उपवास करें। फिर दूसरे पक्ष की दूज तिथि से दो उपवास, तीसरे पक्ष की तीज से तेला, चौथे पक्ष की चतुर्थी से चौला, पाँचवें पक्ष की पंचमी से पंचोला- इस तरह तिथि मुताबिक उपवास संख्या बढ़ाते हुए पन्द्रहवें पक्ष में पूर्णिमा से अथवा अमावस्या से पन्द्रह उपवास करें।
इस प्रकार इस तप में 11 महीना और 22 पक्ष, कुल 120 दिन लगते हैं। द्वितीय प्रकार
एकादिवृद्धया तिथिषु, तप एकासनादिकम् । विधेयं सर्वसंपत्ति सुखे, तपसि निश्चितं ।।
आचारदिनकर, पृ. 368-69