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________________ 180...सज्जन तप प्रवेशिका एकादशेषु शुक्लेषु, पक्षेष्वेकादशेषु च। यथाशक्ति तपः कार्य, वाग्देव्यर्चनपूर्वकं ।। आचारदिनकर, पृ. 368 विधिमार्गप्रपा के मत से इसमें ग्यारह शुक्ल एकादशियों के दिन मौन पूर्वक उपवास करें। आचारदिनकर के अनुसार इसमें यथाशक्ति कोई भी तप किया जा सकता है। इस प्रकार यह तप ग्यारह महीनों में पूर्ण होता है। उद्यापन – इस तप की श्रेष्ठता प्रसारित करने हेतु तप के अन्तिम दिन में उत्तम धातु से श्रुतदेवता की मूर्ति बनवाकर उसकी प्रतिष्ठा करवायें तथा विधि पूर्वक उसकी पूजा करें। उस दिन यथासामर्थ्य साधर्मी भक्ति एवं संघपूजा भी जाप • प्राचीन परम्परानुसार इस तप के दिनों में अग्रलिखित जापादि करें - साथिया खमा. कायो. माला श्री श्रुतदेवतायै नमः 14 14 14 20 11. श्री तीर्थङ्करमातृ तप तीर्थङ्कर परमात्मा की माताओं के निमित्त जो तप किया जाता है, उसे मातृ तप कहते हैं। यह तप वर्तमान अवसर्पिणी कालखण्ड के चौबीस तीर्थङ्कर की माताओं से सम्बन्धित है। तीर्थङ्कर की माताएँ पुण्यशाली होती हैं, क्योंकि जब प्रभु गर्भ में आते हैं तब श्रेष्ठ फलदायी चौदह स्वप्न देखती हैं, गर्भ प्रभाव से माता का शरीर स्वच्छ एवं सुगन्धमय हो जाता है, अन्य माताओं के समान उनका गर्भ-स्थान बेडौल नहीं दिखता, वे गूढगर्भा होती हैं। तीर्थङ्कर के जन्म के बाद उनकी माता गर्भ धारण नहीं करतीं, परन्तु इस विषय में नेमिनाथ भगवान की माता शिवादेवी अपवाद रूप हैं, क्योंकि उसने नेमिनाथ के बाद रथनेमि को जन्म दिया था, ऐसा कदाच ही होता है। सप्ततिशतस्थान प्रकरण में कहा गया है कि वर्तमान भरत क्षेत्रीय चौबीस तीर्थङ्करों की माताओं में से ऋषभ आदि आठ तीर्थङ्करों की माताएँ मोक्ष गयी हैं, सविधिनाथ आदि आठ तीर्थङ्करों की माताएँ तीसरे सनत्कुमार देवलोक में गयी हैं और कुन्थुनाथ आदि आठ तीर्थङ्करों की माताएँ चौथे माहेन्द्र देवलोक में गयी हैं। मतान्तर से त्रिशला माता का बारहवें देवलोक में जाने का भी उल्लेख मिलता है। इस वर्णन का भावार्थ यह है कि तीर्थङ्कर की माताएँ पूजनीय हैं। यह
SR No.006259
Book TitleSajjan Tap Praveshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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