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________________ 164...सज्जन तप प्रवेशिका उद्यापन - इस तप की पूर्णाहुति पर जिनालय में बृहत्स्नात्र पूजा करें। उपाश्रय में प्रतिष्ठा विधि के अनुसार नंद्यावर्त पूजा करें। साधर्मी भक्ति एवं संघपूजा करें। 51. बीसस्थानक तप जिस तप में अरिहन्त आदि श्रेष्ठ बीस पदों (स्थानों) की आराधना की जाती है उसे बीसस्थानक-तप कहते हैं। तीर्थङ्करों के जीवन चरित्र से अवगत होता है कि प्रत्येक तीर्थङ्कर यह तप अवश्य आचरते हैं। यह आवश्यक नहीं कि सभी तीर्थङ्कर बीस ही पदों की उपासना करते हों, लेकिन इस तप का आराधन करते हुए तीर्थङ्कर नामकर्म का बंध निश्चितमेव करते हैं। यह तप तीर्थङ्कर नामकर्म का उपार्जन करने में परम निमित्त है। यदि इसकी आराधना सम्यक् विधि से की जाये तो उसी भव में इस तप का सुफल प्राप्त हो सकता है। इस सम्बन्ध में गीतार्थ मुनियों ने कहा है - "तीजे भव थानक तप करि।" वर्तमान में यह तप खूब प्रचलित है। आज भी यह तप श्रेष्ठ फल के उद्देश्य से ही किया जाता है। इसकी आराधना आबाल-वृद्ध सभी कोई कर सकते हैं। यह तप विधिमार्गप्रपा में इस प्रकार प्राप्त होता है तित्थयरनामकरणाइ बीसं ठाणाइं पारणंतरिएहिं वीसाए उववासेहिं आराहिज्जति त्ति चालीसदिणमाणो वीसट्ठाणतवो।। विधिमार्गप्रपा, पृ. 29 इस तप में अरिहंत आदि बीस स्थानों की आराधना हेतु बीस उपवास एकान्तर पारणा पूर्वक करें। इस प्रकार चालीस दिन में यह तप पूर्ण होता है। वर्तमान की प्रचलित परम्परा में प्रत्येक पद की आराधना 20-20 उपवास पूर्वक की जाती है। लगभग 400 उपवास पूर्वक यह तप पूर्ण होता है। कुछ विरले साधक बेले-बेले, तेले-तेले से भी इन पदों की आराधना करते हैं। आजकल एकासना द्वारा भी यह तप किया जा रहा है। आचार्य वर्धमानसूरि ने भी इस तप की चर्चा अवश्य की है लेकिन उन्होंने इस आराधना में तप करना आवश्यक नहीं बतलाया है। उनका मन्तव्य है कि मुक्ति के लिए इन बीस पदों की आराधना अवश्य की जानी चाहिए, किन्तु वह तप द्वारा ही की जाये यह जरूरी नहीं है। इसके अतिरिक्त अन्य ग्रन्थों में
SR No.006259
Book TitleSajjan Tap Praveshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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