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________________ जैन धर्म की श्वेताम्बर परम्परा में प्रचलित तप-विधियाँ...157 प्रथम प्रकार शुक्लपक्षेषु कर्त्तव्याः, क्रमात्पंचदशस्वपि । उपवासस्तिथिष्वेवं, पूर्यते विधिनैव तत् ।। आचारदिनकर, पृ. 369 इस तप को प्रारम्भ करने हेतु किसी भी शुभ मास की शुक्ला प्रतिपदा को उपवास करें, फिर दूसरे मास में शुक्ल पक्ष की द्वितीया को उपवास करें- इस प्रकार क्रमश: पन्द्रहवें मास में पूर्णिमा को उपवास करें। इस तरह कुल पन्द्रह उपवासों से यह तप पूरा होता है। यदि कोई तिथि भूल जायें, तो तप को फिर से प्रारम्भ करें। द्वितीय प्रकार - इसमें पूर्ववत तप प्रारम्भ करके प्रत्येक पक्ष की एक-एक तिथि आगे-आगे बढ़ाते हुए उपवास करें। ऐसा करने पर पन्द्रह पक्षों में पन्द्रह उपवासों से यह तप पूर्ण होता है। तृतीय प्रकार - इसमें तिथि नियम का विचार किये बिना 15 उपवास एकान्तर पारणे से करें। इस प्रकार एक माह में यह तप पूर्ण होता है। उद्यापन - इस तप के उद्यापन में ऋषभदेव प्रभु की पूजा करें। चाँदी का वृक्ष बनवाकर उसकी शाखा में सोने का पालना बांधे, उस पालने में सूत की गादी रखें, उस पर स्वर्ण की पुतली बनवाकर सुलाएं। पन्द्रह-पन्द्रह पकवान एवं फल चढ़ाएँ। पन्द्रह माह तक तप की तिथियों पर नये-नये नैवेद्य आदि परमात्मा को अर्पित करें। संघवात्सल्य एवं संघपूजा करें। • पूर्व परम्परा का अनुसरण करते हुए इसमें प्रथम तीर्थङ्कर का जाप आदि करें। जाप साथिया खमा. कायो. माला श्री ऋषभदेवस्वामी अर्हते नम: 12 12 12 20 45. गौतमपात्र (पड़गह) तप गौतम स्वामी के पात्र को लक्ष्य में रखकर जो तप किया जाता है उसे गौतमपात्र-तप कहते हैं। आगमों में वर्णन आता है कि गौतमस्वामी ने स्वलब्धि प्रयोग से केवल एक पात्र खीर द्वारा 1503 तापसों को यथेष्ट पारणा करवाया था, जिससे 501 तापसों ने पारणा करते-करते केवलज्ञान प्राप्त कर लिया। उस लब्धि विशेष की सम्प्राप्ति के उद्देश्य से यह तप करते हैं। इस तप के प्रभाव से विविध लब्धियों की प्राप्ति होती है। यहाँ ‘पड़गह' का हिन्दी रूपान्तरण
SR No.006259
Book TitleSajjan Tap Praveshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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