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132...सज्जन तप प्रवेशिका उपवास एकान्तर पारणा पूर्वक निरन्तर भी किये जाते हैं और शक्ति दौर्बल्य के कारण पृथक्-पृथक् भी किये जाते हैं।
उक्त मूल पाठ में आगत 'उववासाइं' में 'आदि' शब्द एकासना, नीवि, आयंबिल आदि तप का संकेत करता है। वर्तमान में यह तप प्रायः उपवास या एकासना के द्वारा किया जाता है। दूसरी विधि
सप्ततिशतं जिनानामद्दिश्यैकैक मेक भक्तं च । कुर्वाणानामुद्यापनात्तपः पूर्यते सम्यक् ।।
आचारदिनकर, पृ. 357 आचारदिनकर के उल्लेखानुसार इस तप में 170 तीर्थङ्करों की आराधना निमित्त प्रत्येक के लिए लगातार एक-एक एकासना करें। तीसरी विधि विंशत्येकभक्तानि कृत्वा पारणकानि।
आचारदिनकर, पृ. 357 आचारदिनकर के अनुसार द्वितीय विकल्प यह है कि इस तप में आठ बार निरन्तर बीस-बीस एकासना करके पारणा करें। इस प्रकार 8 x 20 = 160+10 = 170 एकासना और 9 पारणे होते हैं।
उद्यापन - प्रस्तुत तप की पूर्णाहुति पर बृहत्स्नात्र विधि पूर्वक पूजा करें। एक सौ सत्तर पकवान, पुष्प, फल आदि चढ़ायें। साधर्मीवात्सल्य एवं संघपूजा करें।
• इस तप के दौरान अग्रलिखित क्रम से 170 तीर्थंकरों की विधियुक्त आराधना करें
साथिया खमा. कायो. माला
___ 12 12 12 20 जाप के नाम इस प्रकार हैं - 1. जम्बूद्वीपे महाविदेह के तीर्थङ्कर 1. श्री जयदेव सर्वज्ञाय नमः 2. श्री कर्णभद्र सर्वज्ञाय नमः 3. श्री लक्ष्मीपति सर्वज्ञाय नमः 4. श्री अनन्तवीर्य सर्वज्ञाय नमः 5. श्री गंगाधर सर्वज्ञाय नमः 6. श्री विशालचन्द्र सर्वज्ञाय नमः