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________________ 118...सज्जन तप प्रवेशिका माला जाप - जिस तीर्थङ्कर के आश्रित तप प्रवर्त्तमान हो, उस नाम के साथ 'नाथाय नम:' जोड़ें। जैसे- पार्श्वनाथाय नमः साथिया खमा. कायो. 12 12 12 20 21. छहमासिक तप भगवान महावीर के आश्रित 180 उपवास करने से छहमासी तप होता है। इस कालखण्ड के अन्तिम शासनाधिपति भगवान महावीर ने अपने जीवन काल में सबसे उत्कृष्ट छह मासिक तप किया था। उन्होंने 180 उपवास लगातार किये, किन्तु इस पंचम काल में संघयण बल एवं मनोबल उतना सक्षम न होने के कारण इतने उपवास निरन्तर करना सम्भव नहीं है अत: 180 उपवास एकान्तर बियासना के पारणा पूर्वक किये जाते हैं। कुछ जन छट्ठ-छट्ठ अथवा अट्ठमअट्ठम के द्वारा भी 180 उपवास की पूर्ति करते हैं। विधि विधिमार्गप्रपाकार ने इस विधि में 180 उपवास का ही निदर्शन किया है। उन्होंने इस तप की भी उत्सर्ग विधि दिखलायी है। विधिमार्गप्रपा का मूल पाठ इस प्रकार है - वद्धमाण-सामि-तित्थ-साहु-चिण्णो, असिय-सएण-उववासाणं छम्मासियतवो विधिमार्गप्रपा, पृ. 29 अन्तिम तीर्थङ्कर वर्धमान स्वामी के तीर्थ में उनके साधुओं द्वारा आचरित यह छहमासी तप एक सौ अस्सी उपवास के द्वारा किया जाता है। ... तपोरत्नमहोदधि के अनुसार छहमासी तप छट्ठ (बेला) से शुरू करना चाहिए और तप की पूर्णाहुति के पहले भी छट्ठ करना चाहिए। छट्ठ के पारणे में भी दो दिन एकाशना करना चाहिए। यदि चतुर्दशी के दिन पारणा आता हो तो उस दिन बेला करना चाहिए। इस प्रकार इस तप में 90 उपवास होते हैं। उद्यापन – इस तप के पूर्ण होने पर तीर्थङ्कर परमात्मा की स्नात्रपूजा करके 180-180 की संख्या में लड्डु, फल, पुष्प आदि चढ़ाएँ तथा संघ, गुरु और साधर्मी की यथाशक्ति भक्ति करें।
SR No.006259
Book TitleSajjan Tap Praveshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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