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108...सज्जन तप प्रवेशिका
के ज्ञान का परिमाप कर लेना चाहिए।
पूर्वाचार्यों ने चौदह पूर्व को एक विशिष्ट नाम की संज्ञा प्रदान की है। इस तप के माध्यम से उन 14 पूर्वो की सम्यक् आराधना की जाती है। जिससे अक्षुण्ण श्रुत की प्राप्ति होती है। यह तप ग्यारह अंग और बारह अंग की भाँति सद्ज्ञान से ही सम्बन्धित है।
श्रमण एवं गृहस्थ साधकों को यह तप करना चाहिए। वर्तमान में यह तप बहु प्रचलित है। विधिमार्गप्रपा में इसकी विधि निम्न है - विधि चउदससु सुद्धचउद्दसीसु चउद्दसपुव्वाराहण तवा ।
विधिमार्गप्रपा., पृ. 28 शुक्लपक्षे __तपः कार्य, चतुर्दश-चतुर्दशी। चतुर्दशानां पूर्वाणां, तपस्तेन समाप्यते ।।
आचारदिनकर, पृ. 358 शुक्लपक्ष की चतुर्दशी के दिन प्रारम्भ कर चौदह मास तक शुक्ल चतुर्दशियों में यथाशक्ति एकाशन आदि तप करके यह तप पूर्ण करें। ___ यहाँ मूल पाठ में एकाशन आदि तप का निर्देश नहीं है, किन्तु इस तप का पूर्व विधियों से सम्बन्ध चला आ रहा है। इस कारण पूर्ववत इस तप में भी एकाशन आदि का उल्लेख कर दिया है।
वर्तमान सामाचारी में यह तप किसी भी शुभ दिन से प्रारम्भ कर चौदह उपवास एकान्तर पारणा पूर्वक अथवा अपनी अनुकूलता के अनुसार पूर्ण किये जाते हैं। __ उद्यापन - इस तप के पूर्ण होने पर ज्ञान पंचमी की भाँति चौदह-चौदह पुस्तकादि द्वारा ज्ञान पूजा करें। साधर्मीवात्सल्य एवं संघपूजा करें।
• जीत आचरणा के अनुसार प्रत्येक मास की शुक्ला चतुर्दशी के दिन क्रमश: एक-एक पद का जाप आदि निम्न रीति से करें