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________________ जैन धर्म की श्वेताम्बर परम्परा में प्रचलित तप-विधियाँ...105 ग्यारह अंग सूत्रों के नाम ये हैं- 1. आचारांग 2. सूत्रकृतांग 3. स्थानांग 4. समवायांग 5. भगवती 6. ज्ञाताधर्मकथा 7. उपासकदशांग 8. अन्तकृत्दशांग 9. अनुत्तरोपपातिकदशांग 10. प्रश्नव्याकरण 11. विपाकसूत्र। स्वरूपत: आचारांग आदि ग्यारह अंग सूत्रों का तप होने से यह अंग तप कहा जाता है। यह साधुओं एवं गृहस्थों के करने योग्य आगाढ़ तप है। इस तप की सामान्य विधि इस प्रकार हैविधि तहा एगारससु सुद्ध- एगारसीसु, सुयदेवया-पूया पुव्वं । एगासणगाइ तवो मासे, एगारस कीरइजत्थ सो एगारसंगतवो ।। उज्जमणं पंचमी तुल्लं। नवरं सव्व-वत्थूणि एगारस गुणाई ति । विधिमार्गप्रपा, पृ. 28 यह तप शुभ मास की शुक्ला एकादशी से प्रारम्भ करके ग्यारह महीनों की एकादशियों में एकासना, नीवि, आयम्बिल या उपवास द्वारा किया जाता है। इस तप-विधि के मूल पाठ में ‘एगासणाई' शब्द का प्रयोग है। वहाँ आदि शब्द से नीवि आदि का ग्रहण करना चाहिए। यदि शक्ति हो तो इस तप में उपवास ही करना चाहिए, वरन सामर्थ्य के अनुसार आयम्बिल आदि तपों का सेवन करना चाहिए। इस प्रकार 11 महीनों की 11 एकादशियों में यह तप पूर्ण होता है। आचारदिनकर (पृ. 354) के अनुसार यह तप प्रत्येक मास की एकादशी अर्थात कृष्ण-शुक्ल उभय एकादशियों को किया जाता है। उद्यापन- इस तप का उद्यापन ज्ञान पंचमी-तप की भाँति ही करें, विशेष इतना है कि सभी वस्तुएँ ग्यारह-ग्यारह चढ़ायें। इन दिनों श्रुत देवता की पूजाभक्ति विशेष रूप से करें। • गीतार्थ परम्परा का अनुसरण करते हुए प्रत्येक मास की एकादशी के दिन क्रमशः एक-एक पद का जाप निम्नवत करें -
SR No.006259
Book TitleSajjan Tap Praveshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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