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________________ 104...सज्जन तप प्रवेशिका उद्यापन - इस तप की समाप्ति पर महावीर प्रभु की बृहत्स्नात्र पूजा एवं अष्ट प्रकारी पूजा करें। उनकी प्रतिमा के समक्ष छहों विगयों से युक्त पकवान एवं फल आदि रखें। साधर्मीवात्सल्य एवं संघपूजा करें। • गीतार्थ आचरणा के अनुसार इन सर्व तपस्याओं में बीशस्थानक की आराधना निमित्त साथिया आदि सर्व क्रियाएँ निम्नवत करें जाप साथिया खमा. कायो. माला श्री महावीरस्वामी 20 20 20 20 नाथाय नमः 12. ग्यारह अंग तप ___जैन मान्यतानुसार जब तीर्थङ्कर परमात्मा को केवलज्ञान होता है तब वे देव रचित समवसरण में विराजमान होकर साधु-साध्वी, श्रावक-श्राविका, भवनपति, व्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक देवी-देवता बारह पर्षदओं के सन्मुख धर्म देशना देते हैं। उस प्रथम उपदेश में उनके मुखारविन्द से श्रुत का अर्थ रूप प्रवाह निःसत होता है। गणधर (तीर्थङ्कर के प्रमुख शिष्य) उस अर्थ रूप वाणी को सूत्र के रूप में गुम्फित करते हैं। सूत्र रूप में गुंथी गयी वह औपदेशिक वाणी द्वादश अंग (आगम) कहलाती है जो बारह आगम ग्रन्थों के रूप में विभक्त है। आप्त पुरुष की वाणी होने से इसे आगम कहा जाता है तथा यह वाणी उनके आत्मीय अंगों से प्रवाहित होती है। इसलिए सूत्रबद्ध रचना को अंग भी कहा गया है। वर्तमान में बारहवाँ दृष्टिवाद नामक अंग सूत्र विलुप्त हो चुका है, अत: ग्यारह अंग सूत्र ही विद्यमान हैं। यह तप उन ग्यारह अंग सूत्रों की आराधना निमित्त किया जाता है। ये अंग सूत्र तीर्थङ्कर की साक्षात वाणी स्वरूप हैं। उनकी पूजोपासना करने से आगम बोध की प्राप्ति होती है। ज्ञानावरणी आदि कर्मों का निर्जरण होता है, आत्म अध्यवसायों की विशुद्धि उत्तरोत्तर बढ़ती जाती है तथा सद्ज्ञान के प्रकाश में जीवन के समस्त अन्धकार (मिथ्यात्व आदि रोग) मिट जाते हैं।
SR No.006259
Book TitleSajjan Tap Praveshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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