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100... सज्जन तप प्रवेशिका
उद्यापन
इस तप के पूर्ण होने पर अरिहन्त परमात्मा की अष्ट प्रकारी पूजा करें, जिनेश्वर प्रतिमा के आगे इकतीस अथवा सत्ताईस की संख्या में फल, फूल, मोदक आदि चढ़ायें, साधर्मीवात्सल्य एवं संघपूजा करें।
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• गीतार्थ स्थापित विधि के अनुसार इस तप में प्रतिदिन अरिहन्त पद की आराधना करनी चाहिए
साथिया
जाप
ऊनोदरी तपसे नमः 12
खमा.
12
कायो.
12
माला
20
10. सल्लेखना तप
सल्लेखना का सामान्य अर्थ सम्यक् प्रकार से लेखन, अवलोकन, स्मरण करना है। यहाँ अवलोकन से तात्पर्य आत्म स्वरूप की पहचान करते हुए देह के ममत्त्व को विसर्जित कर देना है। तप से देह के प्रति रही हुई ममत्त्व बुद्धि दूर होती है तथा काया कृश होने से देह भाव भी समाप्त हो जाता है । जहाँ देह बुद्धि का अभाव होता है, वहीं चेतना तत्त्व स्व में स्थित हो जाता है और वही साधना की चरम सीमा है। संलेखना तप के द्वारा शरीर को कृश करते हुए आत्म सजगता को बढ़ाया जाता है।
संलेखना, समाधिमरण की पूर्व स्थिति है । संलेखना के अभाव में समाधि मृत्यु की सम्भावना नहीं बन पाती है। संलेखना से जब शरीर निश्चेष्ट या बोहेश सा हो जाता है तब साधक उसके नाशवान सत्य स्वरूप को देखकर और अधिक आत्म तन्मय बन जाता है । उस स्थिति में आयुष्य कर्म की डोर टूटना उसके लिए सद्गति या मोक्ष गति का कारण बनता है।
संलेखना कब, कहाँ और कैसे की जानी चाहिए, आगम ग्रन्थों में इस विषयक विशद चर्चा उपलब्ध होती है । यहाँ सिर्फ संलेखना किस तरह करनी चाहिए? उसकी विधि ही दर्शित करेंगे। यह आगाढ़-तप साधु एवं गृहस्थ दोनों के लिए करने योग्य और अत्यन्त आत्म हितकारी कहा गया है।
विधि
चत्तारि विचित्ताइं विमई निजू हियाई संवच्छरे अ दुन्निड, एगंतरिअं च
चत्तारि ।
आयामं ।।