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________________ 92...सज्जन तप प्रवेशिका ग्रहण करें, तीज को तेरह दत्ति या तेरह कवल- इस प्रकार एक-एक दत्ति अथवा कवल कम करते हुए अमावस्या के दिन एक दत्ति या एक ग्रास ग्रहण करें। तत्पश्चात शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को एक दत्ति या एक ग्रास से प्रारम्भ कर क्रमशः एक-एक दत्ति या कवल बढ़ाते हुए पूर्णिमा को पन्द्रह दत्ति या पन्द्रह ग्रास ग्रहण करे- यह वज्रमध्य चान्द्रायण तप कहलाता है। ___ इस प्रकार यवमध्य एवं वज्रमध्य चान्द्रायण तप दो मास में पूर्ण होता है। इसमें दत्ति या कवल के परिमाण पूर्वक एकाशन तप होता है। पंचाशक प्रकरण, प्रवचनसारोद्धार, सुबोधासामाचारी आदि ग्रन्थों में यह तप पूर्ववत ही कहा गया है। चान्द्रायण तप का यन्त्र इस प्रकार है यवमध्य चान्द्रायण-तप, शुक्ल पक्ष में वृद्धि, दिन 15 ० शुक्लपक्ष तिथि 1 | 2 | 3 | 4 5 6 7 8 9 10 11 12 | 13 दत्ति या कवल 1 संख्या यवमध्य चान्द्रायण-तप, कृष्ण पक्ष में हानि, दिन 15 कृष्णपक्ष तिथि 1 2 | 3 | 4 | 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 दत्ति या कवल संख्या 11111019 | ० 41302 वज्रमध्य चान्द्रायण-तप, कृष्ण पक्ष में हानि, दिन 15 कृष्णपक्ष तिथि कवल 15 ० 46 ० दात्त या |संख्या वज्रमध्य चान्द्रायण-तप, शुक्ल पक्ष में वृद्धि, दिन 15 शुक्लपक्ष तिथि 1| 11|12|13|14 दत्ति या कवल |1|2|3|4|5|6 7 8 9 10 11 12 |13|14/15 संख्या ०० उद्यापन- इस तप को शोभित करने हेतु तप की समाप्ति में जिनप्रतिमा
SR No.006259
Book TitleSajjan Tap Praveshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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