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जैन धर्म की श्वेताम्बर परम्परा में प्रचलित तप-विधियाँ...81
तप | तिथि
किस तीर्थंकर का कौन सा
कल्याणक
प्रकारान्तर
से तप
उप.30
भाद्रपद वदि | नी. | 7 | शान्तिनाथ भगवान का च्यवन-कल्याणक | उप. 1 ए. | 8 | सुपार्श्वनाथ भगवान का च्यवन-कल्याणक | उप. 1 7 | चन्द्रप्रभु भगवान का मोक्ष-कल्याणक उप. 1
भाद्रपद सुदी ए. | 9 | सुविधिनाथ भगवान का मोक्ष-कल्याणक |
___आश्विन वदि | ए. | 13 | महावीर स्वामी का गर्भापहार कल्याणक | उप. 3
इसे कल्याणक-तप कहने के पीछे दूसरा हेतु यह है कि जिस समय तीर्थङ्कर परमात्मा का जन्म, च्यवन, केवलज्ञान आदि होता है उस वक्त नारकी जीवों को भी मुहूर्त मात्र के लिए सुख की अनुभूति होती है। इस तरह तीनों विश्व का कल्याण करने वाला होने से इसे कल्याणक तप कहा गया है।
इस तप के प्रभाव से तीर्थङ्कर नाम कर्म का बंध होता है, जिसके परिणाम स्वरूप भवान्तर में तीर्थङ्कर पद की प्राप्ति होती है। यह तप साधु एवं श्रावक दोनों के लिए करणीय बताया गया है।
उद्यापन – इस तप के उद्यापन में जिनप्रतिमा के आगे चौबीस की संख्या में स्नात्र पट, स्नात्र कलश, चन्दन पात्र, धूपदहन पात्र, वस्त्र, नैवेद्य पात्र, कुम्पिका आदि पूजा के उपकरण रखें तथा बृहत्स्नात्र-विधि से परमात्मा की स्नात्र पूजा करें।
परमात्मा की प्रतिमा के समक्ष चौबीस जाति के विभिन्न फल, विभिन्न प्रकार के पकवान, पुष्प आदि चौबीस-चौबीस की संख्या में चढ़ाएँ। स्वर्णमय रत्नजटित चौबीस तिलक भी चढ़ाएं। साधुओं को अन्न, वस्त्र एवं पात्र दान दें। संघ की भक्ति करें।