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________________ जैन धर्म की श्वेताम्बर परम्परा में प्रचलित तप-विधियाँ...67 31. उपासक प्रतिमा तप प्रतिज्ञा का अर्थ है - प्रतिज्ञा, व्रत या तप विशेष। आगमों में गृहस्थ श्रावक के लिए 'उपासक' शब्द का प्रयोग है। अत: गृहस्थ साधक द्वारा निश्चित काल के लिए दृढ़ संकल्प पूर्वक धारण किया गया विशिष्ट आचरण, प्रतिमा तप कहा जाता है। ____श्रावक प्रतिमाएँ गृही-जीवन में की जाने वाली साधना की विकासोन्मुख भूमिकाएँ (श्रेणियाँ) हैं। इन पर आरूढ़ हुआ साधक स्वस्वरूप को प्राप्त कर लेता है अत: यह तप नैतिक जीवन के विकास एवं चरम आदर्श की प्राप्ति के लिए किया जाता है। ये प्रतिमाएँ श्वेताम्बर और दिगम्बर दोनों परम्पराओं में समान रूप से मान्य है। इसके नाम एवं क्रम में निम्न अन्तर दृष्टत्य है - श्वेताम्बर मान्य उपासक भूमिकाओं के नाम क्रमश: इस प्रकार हैं - 1. दर्शन 2. व्रत 3. सामायिक 4. पौषध 5. नियम 6. ब्रह्मचर्य 7. सचित्त त्याग 8. आरम्भ त्याग 9. प्रेष्य परित्याग 10. उद्दिष्टभक्त त्याग और 11. श्रमणभूत। (उपासकदशा, संपा. मधुकरमुनि, 1/70-71; समवायांग, संपा. मधुकरमुनि, 11/1) दिगम्बर मान्य क्रम एवं नाम इस प्रकार हैं - 1. दर्शन 2. व्रत 3. सामायिक 4. पौषध 5. सचित्त त्याग 6. रात्रिभोजन एवं दिवा मैथुन विरति 7. ब्रह्मचर्य 8. आरम्भत्याग 9. परिग्रहत्याग 10. अनुमति त्याग और 11. उद्दिष्ट त्याग। (चारित्रपाहुड- 22, रत्नकरण्डश्रावकाचार- 137-147, वसनन्दिश्रावकाचार 4) - दोनों परम्पराओं में एक महत्त्वपूर्ण अन्तर यह भी है कि सामान्यतया श्वेताम्बर-परम्परा में इन प्रतिमाओं के पालन के पश्चात पुन: पूर्व अवस्था में लौटा जा सकता है, लेकिन दिगम्बर-परम्परा में प्रतिज्ञा यावज्जीवन के लिए होती है और साधक पुन: पूर्व अवस्था की ओर नहीं लौट सकता। यहाँ श्वेताम्बर-परम्परा सम्बन्धी तप-विधियों का उल्लेख किया जा रहा है, अत: उपासक प्रतिमा की चर्चा उसी लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए करेंगे___ 1. दर्शन-प्रतिमा - इस संसार में वस्तु, व्यक्ति या पदार्थ जैसा है उसे
SR No.006259
Book TitleSajjan Tap Praveshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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