________________
66...सज्जन तप प्रवेशिका
उपवासमेकभक्तं, तथैकसिक्थैकसंस्थिति-दत्तीः । निर्विकृतिमाचाम्लं, कवलाष्टकं च क्रमात्कुर्यात् ।।
आचारदिनकर, पृ. 338 इस तप में ज्ञानावरणी कर्म के क्षय निमित्त प्रथम दिन उपवास, दूसरे दिन एकासना, तीसरे दिन एक सिक्थ (एक दाना) से चौविहार आयंबिल, चौथे दिन एक स्थान पर चौविहार एकासना, पांचवें दिन एक दत्ति ठाम चौविहार (एक बार पात्र में आ जाये वही खाना), छठे दिन लूखी नीवि, सातवें दिन आयम्बिल एवं आठवें दिन आठ कवल का एकासन करें। इसी प्रकार शेष सात कर्मों की निर्जरा के लिए भी 8-8 दिन की ओलियाँ करें। इस तरह यह तप चौसठ दिन में पूरा होता है। ___ यह तप आश्विन एवं चैत्र शुक्ला अष्टमी से पूर्णिमा तक आठ दिनों में किया जाता है। इस तरह चार वर्षों में आठ ओली = 64 दिनों में पूर्ण होती हैं।
उद्यापन- इस तप के बहुमानार्थ एवं आठ कर्मों के निवारणार्थ आठ शाखाओं, आठ पत्तों वाला चांदी का वृक्ष तथा आठ कर्म रूपी वृक्ष को छेदने के लिए सोने की कुल्हाड़ी जिनबिम्ब या ज्ञान के आगे रखें। बृहत्स्नात्र-विधि से परमात्मा की पूजा करें। चौसठ मोदक आदि नैवेद्य, फल-फूल आदि चढ़ायें तथा संघ पूजा करें।
• परम्परानुसार अष्टकर्मसूदन तप में प्रतिदिन निम्न क्रियाएँ करनी चाहिए
क्रम
जाप
साथिया खमा. | कायो. | माला
-लं Gooo
श्री अनन्तज्ञानगुण धारकाय नमः श्री अनन्तदर्शनगुण धारकाय नमः श्री अव्याबाधगुण धारकाय नमः श्री क्षायिकसम्यक्त्वगुण धारकाय नमः श्री अक्षयस्थितिगुण धारकाय नमः श्री अमूर्तगुण धारकाय नमः श्री अगुरुलघुगुण धारकाय नमः श्री अनन्तवीर्यगुण धारकाय नमः