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48...सज्जन तप प्रवेशिका
माला
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उद्यापन - इस तप के उद्यापन में बृहत्स्नात्र-विधि पूर्वक पूजा करके उपवास की संख्या के अनुसार अर्थात बारह-बारह फल, पुष्प,नैवेद्य आदि चढ़ाएं। साधर्मीवात्सल्य एवं संघपूजा करें।
• इस तप की पूर्ण सफलता के लिए प्रतिदिन निम्न क्रियाएँ अवश्य करनी चाहिए - साथिया खमासमण
कायोत्सर्ग 12 21. महाघन तप
महाघन का अर्थ है- घन से अधिक संख्या वाला तप महाघन तप कहलाता है। पूर्वाचार्यों के अनुसार इस तपं को करने से चक्रवर्ती की ऋद्धि प्राप्त होती है तथा अशुभ कर्मों का क्षय होता है।
_ “तपसुधा निधि' नामक संकलित पुस्तक में इस तप सम्बन्धित अनेक प्रकारान्तर दिये गये हैं। यह तप साधु एवं गृहस्थ दोनों के लिए अवश्य करणीय है। इसकी सामान्य विधियाँ निम्न प्रकार हैं -
प्रथम रीति – आचारदिनकर के निर्देशानुसार यह तप नौ श्रेणियों में पूर्ण किया जाता है।
महाधनस्तपः-श्रेष्ठं, एक द्वि त्रिभिरेवहि । उपवासैर्नवकृत्वा, पृथक् श्रेणिमुपागतः ।।
आचारदिनकर, पृ. 361 • इस तप की प्रथम श्रेणी में क्रमश: एक-दो-तीन उपवास एकान्तर पारणा से करें।
• द्वितीय श्रेणी में दो- तीन- एक उपवास एकान्तर पारणे से करें। • फिर तृतीय श्रेणी में तीन-दो-एक उपवास एकान्तर पारणे से करें। • तत्पश्चात चौथी श्रेणी में तीन-एक-दो उपवास एकान्तर पारणे से करें। • पांचवीं श्रेणी में तीन-एक-दो उपवास एकान्तर पारणे से करें। • छठी श्रेणी में एक-दो-तीन उपवास एकान्तर पारणे से करें। • सातवीं श्रेणी में दो-तीन-एक उपवास एकान्तर पारणे से करें। • आठवीं श्रेणी में तीन-एक-दो उपवास एकान्तर पारणे से करें। • नवीं श्रेणी में दो-तीन-एक उपवास एकान्तर पारणे से करें।