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________________ 44...सज्जन तप प्रवेशिका इस तरह यह तप चौदह वर्ष, तीन माह और बीस दिन में पूरा होता है। कुछ लोग इसके मध्य में पारणा भी करते हैं। महासेनकृष्णा ने इस तप के बीच में पारणा नहीं किया। तदनुसार इस तप की दिन संख्या बताई गई है। इस तप के फल से तीर्थङ्कर नामकर्म का उपार्जन होता है। आयम्बिल-वर्धमान तप का यन्त्र इस प्रकार है - वर्ष-14, मास-3, दिन-20 आ. उ. आ. |उ. आ. उ. आ. उ. आ. उ. आ. उ. आ. उ. आ. | उ. आ. उ. आ. उ. |1|1| 2 |1|3|1|4|1|5|1|6|1| 7|1|8|1|9|1|10| 11/1|12|1|13|1|14|1|15/1/16/1/17/118/119/11201 21/1/22/1/23/1/24/1/25/1/26/1/27/1/28/1/29/11 31|1|32 | 1 |33 |1|34|1|35 | 1 | 3611 371 38 1 39] 140|1| 41 142 143|144011451 | 46/11 47 148|149/105001 51/1152|1|53|11541 1/55/1156/1157/1158| 1591 61/1162|1163/1164| 165/1166/1/67/1168|1169/11701 71|1|72|1|73 |1|74|1|75|1|76/1/77|1|78|1|79/1|8011 81 182183|1|84185186/187/188189190/11 91 1 92 193194195196 197 198 1991 1001 उद्यापन - इस तप की परिसमाप्ति होने पर बृहत्स्नात्र विधि पूर्वक चौबीस तीर्थङ्कर परमात्माओं की पूजा करें। यथाशक्ति साधर्मिक वात्सल्य एवं संघ पूजा करें। सुविहित मुनियों को आहारादि का दान करें। • प्रचलित विधि का अनुसरण करते हुए इस तपाराधन काल में प्रतिदिन 'ॐ नमो अरिहंताणं' की 20 माला एवं निम्न क्रियाएँ अवश्य करें साथिया खमासमण कायोत्सर्ग माला 12 12 12 20 . 18. श्रेणी तप श्रेणी का अर्थ है पंक्ति। पंक्तिबद्ध जो तप किया जाता है वह श्रेणी-तप कहलाता है। टीकाकार शान्त्याचार्य (टीका- पत्र 600-601) के अनुसार इसमें उपवास से प्रारम्भ कर छह मास पर्यन्त क्रम पूर्वक तपस्या की जाती है। आचारदिनकर आदि कुछ ग्रन्थों में इस तप की छः श्रेणियाँ बतायी गयी हैं। उनमें प्रत्येक में एक-एक उपवास की वृद्धि करते हुए पुन:-पुन: से ऊपर चढ़ा जाता है।
SR No.006259
Book TitleSajjan Tap Praveshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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