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110... आधुनिक चिकित्सा में मुद्रा प्रयोग क्यों, कब और कैसे? अंग- मल-मूत्र अंग, प्रजनन अंग, गुर्दे, हृदय, फेफड़ें, भुजाएँ, रक्त संचार प्रणाली।
• प्राण मुद्रा में पृथ्वी, जल और अग्नि इन तीनों तत्त्वों का एक साथ संयोजन होता है। इससे शरीर तन्त्र में रासायनिक परिवर्तन तथा शरीर के समस्त अवरोध दूर होते हैं।
• एक्यूप्रेशर के अनुसार इस मुद्रा में सायनस के कुछ बिन्दुओं पर दबाव पड़ने से सिर दर्द, सर्दी जुकाम, कफ, खांसी आदि के प्रकोप शान्त होते हैं। प्राणवायु मुख्य रूप से नासिका में, मुख में, हृदय में और नाभि के मध्यभाग में होती है। 27. अपान मुद्रा ____ हमारे समग्र शरीर में मुख्य रूप से प्राणवायु स्थित है। यह प्राण वायु शरीर के विभिन्न अवयवों एवं स्थानों पर भिन्न-भिन्न कार्य करती है इस दृष्टि से इस वाय के पृथक-पृथक नाम दे दिये गये हैं जैसे- प्राण, अपान, उदान, समान आदि। पूर्वकथित पंच वायु तत्त्व पाँच केन्द्रों में अलग-अलग कार्य करता है।
अपान मुद्रा