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आधुनिक चिकित्सा पद्धति में प्रचलित मुद्राओं का प्रासंगिक विवेचन ...109 वर्तमान जीवन के आवश्यक अंग बन चुके हैं। इन साधनों का दुष्प्रभाव सर्वाधिक रूप से आँखों पर पड़ता है जिससे आँख की रोशनी में कमी आती है। प्राण मुद्रा के द्वारा इस तरह की हानि से बचा जा सकता है।
प्राचीन ग्रन्थों में उल्लेख आता है कि इस मुद्रा के द्वारा आँखों की रोशनी को बढ़ाया जाता था और समाप्त हुई रोशनी को वापस लाया जाता था। इस प्रकार प्राण मुद्रा आँखों की रोशनी बढ़ाने में मदद करती है।
• दुर्बल व्यक्ति के लिए यह चिन्तामणि रत्न के समान मूल्यवान है। इसके प्रयोग से इतनी शक्ति पैदा हो जाती है कि कृशकाय एवं दुर्बलमन वाला व्यक्ति मनोदेहिक स्तर पर परम शक्ति का अनुभव करता हुआ रोग संक्रमण से दूर रह सकता है। यह मुद्रा थकावट के समय भी लाभकारी है। इससे थोड़ी देर में ही नवशक्ति का संचार होकर थकान दूर हो जाती है। इस मुद्रा के माध्यम से विटामिन्स की कमी भी दूर की जा सकती है।
• मानसिक दृष्टि से एकाग्रता का विकास होता है, रक्त शुद्धि होने से शरीर में स्फूर्ति, चेतना में नया उत्साह, मन में अपूर्व उमंग, आत्मविश्वास और सुकर्म के प्रति उत्साह पैदा होता है। मन की अशान्ति और भावना की कठोरता दूर होती है।
• आध्यात्मिक दृष्टि से भूख-प्यास की भावना लुप्त होती है अत: उपवास के वक्त विशेष लाभदायी हैं। इससे खाने-पीने की इच्छा को नियंत्रित कर सकते हैं।
• इस मुद्रा में मेरूदण्ड सीधा रहने से प्राण ऊर्जा सक्रिय बनकर ऊर्ध्वमुखी बनती है जिससे इन्द्रिय, मन और भावों में सूक्ष्म परिवर्तन होता है
और व्यक्ति की चेतना ऊर्ध्वगामी बनती है। प्राण मुद्रा से आत्मबल पुष्ट होता है, मोक्षलक्षी चेतनाएँ अपने साध्य में जुटी रहती है, देहजन्य रोगों से मुक्त होने के कारण भाव रोग भी समाप्त प्राय: की स्थिति पा लेते हैं।
• यह मुद्रा दोनों हाथों से करने पर निम्न शक्ति केन्द्रों के स्थान सक्रिय होते हैं
चक्र- स्वाधिष्ठान एवं मूलाधार चक्र तत्त्व- जल एवं पृथ्वी तत्त्व प्रन्थि- प्रजनन ग्रन्थि केन्द्र- स्वास्थ्य एवं शक्ति केन्द्र विशेष प्रभावित अंगमल-मूत्र अंग, प्रजनन अंग, गुर्दे, मेरुदण्ड, पैर।
• इस मुद्रा को एक हाथ से करने पर निम्न चक्रों आदि के विकार दूर होते हैं
चक्र- स्वाधिष्ठान एवं अनाहत चक्र तत्त्व- जल एवं वायु तत्त्व ग्रन्थिप्रजनन एवं थायमस ग्रन्थि केन्द्र- स्वास्थ्य एवं आनंद केन्द्र विशेष प्रभावित