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102... आधुनिक चिकित्सा में मुद्रा प्रयोग क्यों, कब और कैसे? सुपरिणाम
इस पृथ्वी सुरभि मुद्रा में अग्नि तत्त्व और पृथ्वी तत्त्व का संयोजन होने से पृथ्वी तत्त्व के बढ़ने या कमी के कारण उत्पन्न रोगों में राहत मिलती है।
• इस मुद्रा के प्रयोग से उदर सम्बन्धी रोग दूर होते हैं। पाचन क्रिया सुव्यवस्थित रूप से संचालित रहती है। इससे कफ जनित बीमारियों का भी निवारण होता है अत: कफ प्रकृति वालों के लिए उपयोगी मद्रा है।
• साधनात्मक स्तर पर इस मुद्रा से शरीर की जड़ता नष्ट होती है, भारीपन दूर होता है और शरीर बलिष्ठ बनता है। पृथ्वी सुरभि मुद्रा का नियमित प्रयोग करने से षट्चक्र के द्वार खुलते हैं, साधक की सुप्त शक्तियाँ जागृत हो जाती है और वह धीरे-धीरे साधना के चरम सोपानों का स्पर्श करता हुआ साध्य पद को उपलब्ध कर लेता है।
• किन्हीं के अभिमत से यह मुद्रा करने के तुरंत बाद ज्ञान मुद्रा करनी चाहिए, जिससे उत्पन्न हुई शक्ति ऊर्ध्वगामी बन सकें।
• एक्युप्रेशर के मतानुसार यह मुद्रा करने से योनि सम्बन्धी रोग, सर्दी आदि का निवारण होता है तथा काम वासनाएँ नियंत्रित होती है। 25.4. शून्य सुरभि मुद्रा ____दोनों हाथों की मध्यमा अंगुलियाँ आकाश तत्त्व की प्रतिनिधित्व करती है। इस मुद्रा को बनाते समय द्वयांगुष्ठों (अग्नि तत्त्व) को मध्यमा अंगुलियों के मूल से स्पर्श करवाया जाता है इसलिए इस मुद्रा का नाम शून्य (आकाश) सुरभि मुद्रा है। विधि
सुरभि मुद्रा की भाँति सुखासन अथवा निर्दिष्ट किसी भी आसन में बैठ जायें। तदनन्तर पूर्ववत सुरभि मुद्रा बनाकर दोनों अंगूठों के अग्रभागों को मध्यमा अंगुलियों के मूल पर्व पर संयोजित करना आकाश सुरभि मुद्रा है। सुपरिणाम
• इस आकाश सुरभि मुद्रा में अग्नि तत्त्व का आकाश तत्त्व के साथ योग बनता है। आकाश तत्त्व और हृदय का घनिष्ठ सम्बन्ध है इसलिए प्रस्तुत मुद्रा से हृदय तन्त्र सर्वाधिक रूपेण प्रभावित होता है। तत्फलस्वरूप भावधारा निर्मल होती है।