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42... आधुनिक चिकित्सा में मुद्रा प्रयोग क्यों, कब और कैसे? ज्ञानावरणी कर्म का क्षयोपशम होता है। अनुभवियों के मतानुसार ज्योति केन्द्र (ललाट के मध्यभाग) पर श्वेत प्रकाश बिखरता दिखाई देता है।
इस मुद्रा के द्वारा निम्न शक्ति केन्द्र भी सक्रिय होते हैं
चक्र- स्वाधिष्ठान एवं मणिपुर चक्र तत्त्व- जल एवं अग्नि तत्त्व अन्थिप्रजनन, एड्रीनल एवं पैन्क्रियाज ग्रन्थि केन्द्र- स्वास्थ्य एवं तैजस केन्द्र विशेष प्रभावित अंग- प्रजनन अंग, मल-मूत्र अंग, पाचन तंत्र, नाड़ी तंत्र, यकृत, तिल्ली, आँतें आदि। 1.7. पूर्णज्ञान मुद्रा
ज्ञान मुद्रा का यह सर्वोत्तम प्रकार साधकों के लिए नि:सन्देह अनुकरणीय है। इस मुद्राभ्यास का प्रयोजन इसके अन्वर्थक नाम से ही स्पष्ट हो जाता है कि साधक यह मुद्रा केवलज्ञान की संप्राप्ति के उद्देश्य से करता है। यह मुद्रा नशा नियंत्रण और अति महत्त्वाकांक्षा को नियंत्रित करने की सूचक है।
पूर्णतान मुद्रा