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________________ अध्याय-2 सामान्य अभ्यास साध्य यौगिक मुद्राओं का __ स्वरूप एवं उनके सुप्रभाव मुद्रा विज्ञान, योग विज्ञान का अति सूक्ष्म अंग है। शुद्ध विज्ञान पर आधारित यह विद्या योग साधक ऋषि-महर्षियों एवं अतिशय युक्त पुरुषों की अपूर्व देन है। योग साधना के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए राजमार्ग है। __ मानव शरीर प्रकृति की सर्वोत्तम कृति है। यौगिक और प्राकृतिक दृष्टि से इसके भीतर सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का समावेश हो जाता है। हाथ की 5 अंगुलियों में पाँच तत्त्व और सात चक्रों का समावेश हो जाता है। हर अंगुली से सूक्ष्म विद्युत प्रवाह निकलता है। यौगिक साधना के द्वारा इस प्रवाह को बढ़ाया जा सकता है तथा इसके अनेक आश्चर्यकारी प्रभाव भी देखे जाते हैं। __मुद्रा प्रयोग के द्वारा सहज रूप से शारीरिक प्रकृति को नियन्त्रित रखा जा सकता है। इसी कारण योग साधकों ने आसन, प्राणायाम आदि क्रियाओं में मुद्रा प्रयोग को विशेष महत्त्व दिया है। कई मुद्राएँ इतनी सरल होती हैं कि उन्हें लघु प्रयासों के द्वारा ही सीखा जा सकता है। ऐसी ही कुछ यौगिक मुद्राओं का स्वरूप एवं उसके परिणाम इस प्रकार हैं। 1. चिन्मुद्रा ___ चिन् का अर्थ है चेतना। चेतन तत्त्व की ओर उन्मुख करने वाली होने के कारण इसे चिन्मुद्रा कहा जाता है। इस मुद्रा का प्रयोजन बाह्य चेतना से आभ्यन्तर चेतना में प्रवेश करना है। संसारी प्राणी की चेतना प्रतिसमय बाह्य जगत में शाश्वत सुख ढूंढती रहती है, क्षणिक पदार्थों के संयोग में सुखानुभूति की कल्पना करती रहती है, स्वार्थमूलक सम्बन्धों में आत्मशक्ति का विनाश करती रहती है इस तरह की भ्रमपूर्ण प्रवृत्तियों से छुटकारा पाने हेतु सबल माध्यम है चिन्मुद्रा।
SR No.006257
Book TitleYogik Mudrae Mansik Shanti Ka Safal Prayog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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