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________________ विशिष्ट शब्दों का अर्थ विन्यास ...155 2. बहिर्कुभक - श्वास को बाहर की ओर रोकना बहिर्कुभक कहलाता है। मणिपुर चक्र- सात चक्रों के आरोही क्रम में तीसरा चक्र। मणि का अर्थ रत्न और पुर का अर्थ नगर है अर्थात रत्नों का नगर। मणिनगर नाम पड़ने के पीछे मुख्य कारण यह है कि इस चक्र के स्थान पर प्राण की तीव्रता या प्रचंडता अधिकतम रहती है। यह चक्र स्थान मणियों की माला के समान चमकता है इसलिए इसे मणिपुर चक्र कहते हैं। इस चक्र का स्थान मेरुदंड के मध्य नाभि के ठीक पीछे है। अनाहत चक्र- अनाहत का अर्थ है अप्रभावित या अविजित। मानव शरीर का वह स्थान जहाँ साधक को सूक्ष्म ध्वनि सुनाई देती है, जो दो वस्तुओं के घर्षण या आघात के बिना निर्मित होती है अनाहत चक्र कहलाता है। इसी को शब्द ब्रह्म कहते है। यह चक्र मेरुदंड में हृदय के ठीक पीछे स्थित है। विशुद्धि चक्र- विशुद्धि का अर्थ है शुद्धि, पवित्रता। शरीर का वह शक्ति स्थल, जिसके उद्घाटित होने पर इष्ट और अनिष्ट विष और अमृत तथा सृष्टि की समस्त वस्तुएँ आनन्दानुभूति के रूप में परिणत हो जाती है, विरोधी तत्त्वों में सामंजस्य और शान्ति स्थापित होती है विशुद्धि चक्र कहलाता है। ___ इस चक्र का स्थान मेरूदंड में कंठकूप के सामने अथवा विशुद्धि क्षेत्र के ठीक पीछे हैं। आज्ञा चक्र- आज्ञा का अर्थ आदेश है। मानव शरीर का ऊर्ध्वभागीय स्थान जहाँ चेतना का विशिष्ट ज्ञान प्रकट होता है वह आज्ञा चक्र कहलाता है। आज्ञा चक्र जीवन के मूल स्रोत का प्रवेश द्वार है। कहते हैं कि मानवीय देह रचना में इन्द्रिय अनुभूतियों के दस द्वार हैं। प्रथम नौ- दोनों आँखें, दोनों कान, दोनों नासारन्ध्र, मुख, गुदाद्वार और मूत्रेन्द्रिय है। इन द्वारों के माध्यम से मनुष्य का बाह्य जगत के साथ सम्बन्ध स्थापित होता है। दसवाँ दरवाजा आज्ञा चक्र है जो सूक्ष्म जगत का परिचय करवाता है। यह आज्ञा चक्र मेरूदंड के सबसे ऊपर ललाट के मध्य भाग में (दोनों भौंहों के बीच) स्थित है। यह वह स्थान है जहाँ ईड़ा और पिंगला परस्पर मिलकर सुषुम्ना में परिणत हो जाती है।
SR No.006257
Book TitleYogik Mudrae Mansik Shanti Ka Safal Prayog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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