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विशिष्ट शब्दों का अर्थ विन्यास ...153 को नियंत्रित करते हैं और सम्पूर्ण शरीर में परिव्याप्त है। इन चक्रों को पद्म या कमल के नाम से भी जाना जाता है।
चक्र मानवीय संरचना में निहित प्राणमय केन्द्र है। प्रत्येक व्यक्ति में ये चक्र असंख्य मात्रा में विद्यमान हैं तथापि योगसाधना में उपयुक्त किये जाने वाले सात चक्र हैं। __1. मूलाधार, 2. स्वाधिष्ठान 3. मणिपुर, 4. अनाहत, 5. विशुद्धि 6. आज्ञा और 7. सहस्रार।
शरीर संरचना में प्रत्येक चक्र उस बटन (स्विच) के समान है जिसको प्रारम्भ (ऑन) करने पर मन के विशिष्ट स्तर जागृत और सक्रिय हो जाते हैं।
मूलाधार चक्र- मूल अर्थात जड़ और आधार यानी सहारा। इसे चेतना के उत्थान की आधार भूमि कह सकते हैं।
यह चक्र प्रत्येक व्यक्ति के अस्तित्व का ढांचा है।
यह एक मंच है जहाँ से प्रत्येक व्यक्ति (पुरुष अथवा स्त्री) स्वयं को अभिव्यक्त कर सकता है।
यह एक ऐसा हवाई अड्डा है जहाँ से व्यक्ति चेतना के उच्च स्तरों की ओर उड़ान भर सकता है।
आत्मा की मूल शक्ति जो कुंडलिनी नाम से पहचानी जाती है, वह मूलाधार चक्र में वास करती है।
मूलाधार चक्र पेरिनियम क्षेत्र में स्थित है। इसकी स्थिति पुरुष और स्त्री में थोड़ी भिन्न है।
पुरुष में- गुदाद्वार और जननांग के मध्य भाग में है तथा स्त्री में- योनि और गर्भाशय के संगम स्थल पर है। - कुंडलिनी- चेतना की वह शक्ति, जो मूलाधार चक्र में साढ़े तीन कुंडली मारे हुए सर्प के रूप में स्थित है।
पुरुष या नारी की यह शक्ति जब तक सुप्त अवस्था में रहती है वे पशुवत जीवन जीते है। योगाभ्यास द्वारा कुंडलिनी निष्क्रिय से सक्रिय रूप में रूपान्तरित होती है।
जब कुंडलिनी जागती है और उच्च चक्रों की ओर ऊर्ध्वगमन करती है तब आनन्द और ज्ञान की अभिवृद्धि होती है।