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________________ 150... यौगिक मुद्राएँ : मानसिक शान्ति का एक सफल प्रयोग हिस्से से लगा दें। दाहिनी एड़ी को इस तरह से व्यवस्थित कर लें कि उसका दबाव योनिमुख पर पड़े। फिर बायें पैर को मोड़कर दाहिनी पिंडली के ऊपर रखें। फिर धीरे से बायें पैर की अंगुलियों को दाहिनी पिंडली के बीच दबा लें। दाहिने पैर की अंगुलियों को दाहिनी जाँघ तथा पिंडली के बीच से ऊपर की ओर खींच लें। घुटने जमीन से लगे रहें, मेरुदण्ड एवं सिर सीधा रखें। तंत्र- तंत्र, तनोति + त्रायति इन दो शब्दों का संयुक्त रूप है। तनोति का अर्थ है विस्तार, विकास, खींचना। त्रायति का अर्थ है स्वतंत्र या मुक्त होना। समग्र दृष्टिकोण से (तन् + त्रा) तंत्र का अर्थ हुआ चेतना जगत और मूर्त जगत के ज्ञान को विकसित करना या उसका विस्तार करना, अपनी इच्छाओं का परिसीमन कर भौतिकता से परे चले जाना। इस तरह तंत्र शब्द अध्यात्म प्रधान है। ___ तंत्र का साधक तांत्रिक कहलाता है। तंत्र वह पद्धति है जो जीवन के सर्वांगीण विकास का लक्ष्य रखती हैं। जीवन की दृश्य समस्याओं के साथ समझौता करने का और अंतत: पूर्ण ज्ञान की उपलब्धि का साधन है। यंत्र- मंडल का विशिष्ट आकार यंत्र कहलाता है। सृष्टि की शक्तियों का केन्द्र बिन्दु, एक निश्चित आकार अथवा योजना से तैयार किया गया मंडल। मंत्र- यंत्र चेतना का रूप होता है जबकि मंत्र चेतना का वाहन है। यंत्र प्रकट अभिव्यक्ति, शक्ति की समाकृति है जबकि मंत्र शक्ति रूप है एवं चेतना और आकार के मध्य सम्पर्क सूत्र है। यंत्र दृश्य रूप प्रकाशन है और मंत्र उस प्रकाशन का वाहन है। बंध- बंध का अर्थ बांधना, कसना या बंद करना है। यहाँ बंध शब्द का प्रयोग यौगिक क्रिया के संदर्भ में है। इस योग क्रिया में शरीर के कुछ निश्चित अंगों को बड़ी सतर्कता से संकुचित किया जाता है अथवा कसा जाता है इसलिए इसका नाम बंध हैं। बंध के तीन प्रकार माने गये हैं। 1. जालंधर 2. उड्डीयान और 3. मूलबंध।
SR No.006257
Book TitleYogik Mudrae Mansik Shanti Ka Safal Prayog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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