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________________ विशिष्ट अभ्यास साध्य यौगिक मुद्राओं की रहस्यपूर्ण विधियाँ ...111 विधि • किसी भी ध्यान के एक आसन में बैठ जायें। मेरुदण्ड सीधा एवं मुख सामने रहे। फिर शाम्भवी मुद्रा की तरह शरीर की संरचना कर नासिका के अग्रभाग (अंतिम सिरा) पर दृष्टि को स्थिर करना द्वितीय शाम्भवी मुद्रा है। . निर्देश 1. इस मुद्राभ्यास में प्रतिबार कुछ देर के लिए अंतरंग या बहिरंग कुम्भक करें। 2. नेत्रों पर तनाव न पड़ने दें। 3. कुछ हफ्तों या महिनों के अभ्यास के उपरांत समय में वृद्धि करें। सुपरिणाम • इस मुद्रा का नियमित अभ्यास करने से एकाग्रता एवं आत्मस्थिरता में वृद्धि होती है। • मूलाधार चक्र के जागृत होने से कुण्डलिनी शक्ति का ऊर्ध्वारोहण होता है। अभ्यासी साधक अंतर्मुखी एवं अध्यात्मचिन्तन की ओर अग्रसर होता है। आधुनिक उपचार की अपेक्षा इस मुद्राभ्यास से निम्न शक्ति केन्द्र प्रभावित होते हैं इससे साधक का भाव जगत उत्तरोत्तर विशुद्ध होता है। चक्र- मणिपुर, आज्ञा एवं सहस्रार चक्र तत्त्व- अग्नि एवं आकाश तत्त्व ग्रन्थि- एडीनल, पैन्क्रियाज, पीयूष एवं पिनियल ग्रन्थि केन्द्र- तैजस, दर्शन एवं ज्योति केन्द्र विशेष प्रभावित अंग- पाचन संस्थान,नाड़ी तंत्र, स्नायु तंत्र, यकृत, तिल्ली, आँतें, मस्तिष्क, आँख आदि। 16. पंच धारणा मुद्रा .. यहाँ धारणा का अर्थ है ध्यान अथवा संकल्प पूर्वक ग्रहण करने एवं देखने की शक्ति। पंचधारणा का तात्पर्य है- पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश तत्त्वों का यथार्थ ज्ञान। वैदिक शास्त्रों के अनुसार पंच धारणा एक उत्कृष्ट कोटि का साधनात्मक प्रयोग है। इस साधना के फलस्वरूप मनुष्य को सशरीर स्वर्ग में आने-जाने की सामर्थ्यता प्राप्त होती है। इससे मन की गति के समान काययोग को गति (चाल) प्राप्त हो सकती है और आकाश में भी बिना आधार के गमनागमन क्रिया की जा सकती है।
SR No.006257
Book TitleYogik Mudrae Mansik Shanti Ka Safal Prayog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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