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विशिष्ट अभ्यास साध्य यौगिक मुद्राओं की रहस्यपूर्ण विधियाँ ...103
• दीर्घ पूरक के साथ उपरोक्त क्रिया की यथासाध्य पुनरावृत्ति करना ताड़ागी मुद्रा कहलाती है।60 निर्देश
1. इस मुद्रा का अभ्यास सामान्य रूप से 10 बार करें। 2. अभ्यास के दौरान घुटने मुड़े नहीं। 3. किसी भी हालत में शरीर पर जोर न डालें। 4. आगे झुकते समय श्वास बाहर छोड़ें। 5. दीर्घ पूरक करने के बाद जितनी देर भरे हुए श्वास को रोक सकें, रोकें। 6. इस अभ्यास काल में मणिपुर चक्र (नाभिस्थल के पीछे का हिस्सा) पर
चित्त को केन्द्रित करें। सुपरिणाम ___ • यह मुद्रा शरीर एवं अध्यात्म विकास की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण मानी गई है। शारीरिक स्तर पर देखा जाए तो इस मुद्रा के प्रभाव से उदरस्थ एवं जठर सम्बन्धी रोगों का निवारण होता है। पाचन क्रिया में सुधार होता है। अंतरंग प्रदेश में स्थित अनेक नाड़ियाँ प्रभावित होकर अपना कार्य समुचित रूप से करने लगती है। परिणामतः सम्पूर्ण शरीर की कार्यक्षमता बढ़ जाती है। कटि प्रदेश के अंगों पर दबाव पड़ने से स्त्रियों के प्रजनन सम्बन्धी रोगों को दूर करने में विशेष रूप से लाभ पहुँचाती है।
• घेरण्ड संहिता के अनुसार यह मुद्रा जन्म, जरा एवं मरण को नष्ट कर शाश्वत सुख का उपभोक्ता बनाती है।61
• आधुनिक चिकित्सा पद्धति के अनुसार इस मुद्राभ्यास से निम्न शक्ति केन्द्र प्रभावित होते हैं जिससे नानाविध रोगों का सहज निदान हो जाता है
चक्र- मणिपुर एवं मूलाधार चक्र तत्त्व- अग्नि एवं पृथ्वी तत्त्व प्रन्थिएड्रीनल, पैन्क्रियाज एवं प्रजनन ग्रन्थि केन्द्र- तैजस, शक्ति एवं दर्शन केन्द्र विशेष प्रभावित अंग- पाचन संस्थान, नाड़ीतंत्र, यकृत, तिल्ली, आँते, मेरूदण्ड, गुर्दे, पाँव।