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________________ 96... यौगिक मुद्राएँ : मानसिक शान्ति का एक सफल प्रयोग मूलाधार मूलाधार मूलाधार अभिश्वसन शक्तिचालिनी मुद्रा-1 विधि • घेरण्ड संहिता के अनुसार इस मुद्रा के सम्यक परिणाम की प्राप्ति हेतु शरीर पर भस्म रमाकर सिद्धासन में बैठ जायें। • फिर एक बिलांद लम्बी और चार-पाँच सेंटीमीटर चौड़ी कोमल श्वेत वस्त्र की डोरी से, नाभि के अग्रभाग पर कमर में बांध लें। इसके सिवाय शरीर पर अन्य वस्त्र न रहें। • तदनन्तर नासिका-छिद्र द्वारा प्राण को भीतर खींचे और फिर अपान वायु को ऊपर की ओर प्रेरित कर उड्डीयान बन्ध द्वारा दोनों को मिलायें। • जब तक सुषुम्ना द्वार से गमन करती हुई वायु प्रकट न हो, तब तक अश्विनी मुद्रा के द्वारा गुह्यदेश को संकुचित करके रखें। इस प्रकार वायु के रुकने से कुम्भक द्वारा सर्परूपिणी कुण्डलिनी जागृत होकर मार्ग में ऊपर की ओर खड़ी हो जाती है इसे शक्तिचालिनी मुद्रा कहते हैं।52
SR No.006257
Book TitleYogik Mudrae Mansik Shanti Ka Safal Prayog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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