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________________ 84... यौगिक मुद्राएँ : मानसिक शान्ति का एक सफल प्रयोग 9. विपरीतकरणी मुद्रा यहाँ विपरीत का अर्थ है उल्टा, करणी का अर्थ है करना और मुद्रा का अर्थ है शरीर एवं मन की एक विशेष स्थिति। इस शाब्दिक अर्थ के अनुसार शरीर की वह स्थिति जिसमें चेतना की अवस्था परिवर्तित हो जाती है विपरीतकरणी मुद्रा कहलाती है। घेरण्डसंहिता के अनुसार नाभिमूल में सूर्यनाड़ी और तालुमूल में चन्द्र नाड़ी है। सहस्रार में अमृतधारा का प्रवाह रहता है। सूर्यनाड़ी के अमृत के पीने से प्राणी की मृत्यु होती है परन्तु चन्द्र नाड़ी का अमृत पान करने पर मृत्यु का भय नहीं रहता। अतएव सूर्यनाड़ी को ऊपर और चन्द्र नाड़ी को नीचे की ओर करना विपरीतकरणी मुद्रा है।34 आज्ञा अभिश्वसन अपश्वसन बिन्दु 1. विशुद्धि . अल्प कुम्भक मणिपुर अनाहत विपरीतकरणी मुद्रा विपरीतकरणी मुद्रा एक उत्तम प्रकार की क्रिया है। इसका वर्णन योग एवं तन्त्र के अनेक परम्परागत शास्त्रों में मिलता है। हठयोग प्रदीपिका में इसका विवेचन करते हुए कहा गया है कि चन्द्रमा (बिन्दु) से जो अमृत टपकता है वह साधारणत: सूर्य (नाभिस्थल का पिछला हिस्सा मणिपुर चक्र) के द्वारा सेवन कर लिया जाता है। चन्द्रमा (बिन्दु) की स्थिति ऊपर की ओर है तथा सूर्य की स्थिति
SR No.006257
Book TitleYogik Mudrae Mansik Shanti Ka Safal Prayog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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