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60... यौगिक मुद्राएँ: मानसिक शान्ति का एक सफल प्रयोग
• फिर धीरे से रेचक करें ( श्वास छोड़ें)।
• पुनः सामने झुकी हुई अवस्था में श्वास रोकें और दीर्घ पूरक (गहरा श्वास लेते) करते हुए क्रिया की पुनरावृत्ति करें ।
• कुछ आवृत्तियों के पश्चात बायें पैर की एड़ी को गुदाद्वार के नीचे रखते हुए तथा दाहिने पैर को सामने फैलाकर अभ्यास करें। 1
निर्देश
1. यह अभ्यास किसी भी समय किया जा सकता है। विशेष रूप से ध्यान पूर्व इस अभ्यास का सूचन किया जाता है।
2. प्रारम्भिक अभ्यासी प्रत्येक पैर से तीन बार अभ्यास कर सकता है। धीरेधीरे इच्छानुसार क्रिया की संख्या में वृद्धि की जा सकती है।
सामान्य नियमानुसार इस अभ्यास की 12 आवृत्तियाँ होनी चाहिए। जब सजगता प्रत्येक आवृत्ति के अंत में मूलाधार पर लौटती है तब एक आवृत्ति हुई समझनी चाहिए। इसी तरह मानसिक रूप से इसकी गणना करनी चाहिए।
3. जितनी अधिक देर तक कुम्भक ( श्वास को रोककर रखना) कर सकें उतना लाभकारी है परन्तु फेफड़ों पर किसी तरह का तनाव न पड़े। सुपरिणाम
• मुद्राभ्यासी साधकों के अनुसार महामुद्रा के प्रयोग से निम्न लाभ होते हैं• महामुद्रा एक ऐसा अभ्यास है जिसके द्वारा शरीर, मन एवं इन्द्रियों में एक नवीन शक्ति का संचार होता है। इससे मन को एकाग्र करने में सहयोग मिलता है। चित्त सजगता अति सूक्ष्म और गहरी होती है जिसका अनुभव अभ्यासी ही कर सकते हैं।
योगचूड़ामणि उपनिषद् में इसके लाभ की चर्चा करते हुए बतलाया है कि महा मुद्रा के अभ्यास से समस्त नाड़ी मंडलों (प्राण प्रवाह के मार्गों ) की शुद्धि होती है, इड़ा और पिंगला में सम्यक सन्तुलन आता है तथा सभी रस शोषित होकर सुषुम्ना मार्ग की ओर जाते हैं। इसका प्रभाव सम्पूर्ण शरीर पर पड़ता है। 2
• प्रस्तुत ग्रन्थ में यह भी निर्दिष्ट है कि इस मुद्रा की शक्ति से अस्वास्थ्यकर भोजन पच जाता है, स्वादहीन भोजन स्वादयुक्त हो जाता है तथा