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________________ सामान्य अभ्यास साध्य यौगिक मुद्राओं का स्वरूप......55 क्रेनियल नर्स जो गर्दन से गुजरती है उसकी अच्छी मालिश हो जाने से मस्तिष्क सम्बन्धी विभिन्न अंग जैसे- आँख, कान, नाक, जिह्वा आदि स्वस्थ और सक्रिय रहते हैं। टॉन्सिल की अनचाही बढ़त, जलन एवं सूजन समाप्त होती है। • आध्यात्मिक दृष्टि से मन शान्त एवं सुस्थिर बनता है। विचारधारा को अंत:केन्द्रित करने में यह मुद्रा सहयोग करती है परिणामत: ध्यान साधना के उच्च प्रयोग किये जा सकते हैं। • ब्रह्म मुद्रा से विशुद्धि, आज्ञा एवं सहस्रार चक्र प्रभावित होते हैं। इससे आभ्यन्तर शक्तियाँ विकसित एवं फलदायी होती है। 11. आकाशी मुद्रा आकाश शब्द अनेकार्थक हैं। संस्कृत हिन्दी कोश में आसमान, मुक्त स्थान, ब्रह्म, प्रकाश, स्वच्छता, विश्वव्यापी सूक्ष्म द्रव्य आदि को आकाश कहा गया है। यहाँ आकाश के सम्बन्ध में मुक्त स्थान, ब्रह्म, प्रकाश इन अर्थों को ग्रहण किया जा सकता हैं। इन अभिप्रेत अर्थों के आधार पर माना जा सकता है कि आकाशी मुद्रा का प्रयोजन कर्मबद्ध चेतना की चरम अवस्था परमात्म पद (ब्रह्म) को उपलब्ध करना एवं ज्ञान-दर्शन-चारित्र आदि गुणों से सतत प्रकाशित आत्मा की निर्मल-निर्विकार अवस्था का साक्षात्कार करना है। विधि . ध्यान के किसी भी आसन में बैठ जायें। • फिर मुँह को बंद कर, अधिक जोर न देते हुए जिह्वाग्र को अधिकाधिक पीछे मोड़ें। . . फिर जिह्वा के अग्रभाग से ऊपरी तालु का स्पर्श करना आकाशी मुद्रा है। निर्देश 1. सभी मुद्राओं की भाँति इसका प्रशिक्षण भी योग्य निर्देशन में लें। 2. वैकल्पिक रूप से आकाश मुद्रा के प्रयोग के समय उज्जायी प्राणायाम एवं शाम्भवी मुद्रा का अभ्यास कर सकते हैं। 3. नये अभ्यासी को यदि कुछ देर में ही असुविधा का अनुभव हों तो थोड़ी देर विश्राम कर पुनः क्रिया की पुनरावृत्ति करें।
SR No.006257
Book TitleYogik Mudrae Mansik Shanti Ka Safal Prayog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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