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________________ सामान्य अभ्यास साध्य यौगिक मुद्राओं का स्वरूप......53 10. ब्रह्म मुद्रा सामान्यत: सच्चिदानन्द-निर्विकार-निराकार स्वरूपी चेतना को ब्रह्म कहा जाता है। ब्रह्म कर्ममुक्त आत्मा का संबोधन है। श्रमण संस्कृति जगत स्रष्टा अथवा जगत निर्माता को ब्रह्म के रूप में स्वीकार नहीं करती है। वह ब्रह्म अर्थात परमात्मा को स्व-स्वरूप में स्थिर एवं आत्म सख का कर्ता-भोक्ता मानती है। इसके विपरीत ब्राह्मण संस्कृति ब्रह्मा को सृष्टि रचयिता मानती है। इसी तथ्य को ध्यान में रखते हुए ब्रह्मा को चतुरानन (चार मुख वाला कहा गया है। इस मुद्रा के माध्यम से चतुर्मुखी ब्रह्मा के साक्षात्कार एवं स्वनिहित ब्रह्म स्वरूप को प्रकट करने का अभ्यास किया जाता है। विधि ब्रह्म मुद्रा • ध्यान सिद्धि के लिए परम उपयोगी पद्मासन या सुखासन में बैठ जायें। मेरूदण्ड को सीधा रखें। चक्षुयुगल को मन्द गति से उन्मीलित कर दें। दोनों हाथों से ज्ञान मुद्रा करके उन्हें घुटनों पर स्थिर करें।
SR No.006257
Book TitleYogik Mudrae Mansik Shanti Ka Safal Prayog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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