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सामान्य अभ्यास साध्य यौगिक मुद्राओं का स्वरूप......49 इस नये कार्य को स्वीकार कर लेती हैं। इसके परिणामस्वरूप उनकी शक्ति में वृद्धि होती है तथा देखने की क्षमता बढ़ जाती है।
• कुछ देर तक सजगता पूर्वक अभ्यास करने से एकाग्रता एवं मानसिक शान्ति में वृद्धि होती है। वस्तुत: यह अन्तर्दर्शन की विधि है। यद्यपि इस अभ्यास के दौरान आँखें खुली रहती है किन्तु बाह्य जगत के प्रति सजग नहीं रहतीं। आँखें पूर्णत: एकाग्र होती हैं और फलत: मन भी।
• सत्यानन्द सरस्वती के निर्देशानुसार इसके तथा त्राटक के लाभ लगभग समान है। इसमें और त्राटक दोनों में चित्तशक्ति को एक केन्द्र पर सुस्थिर किया जाता है। जिससे एकाग्रता की क्षमता विकसित होती है और जिनका दैनिक जीवन में अपरिमित उपयोग है।14
. इसके अतिरिक्त मन की शक्ति को एक केन्द्र पर केन्द्रित करने से मानसिक शान्ति प्राप्त होती है तथा मन का निरन्तर यहाँ-वहाँ भटकना बन्द हो जाता है। ध्यान के अनुभव प्राप्त करने एवं मन की सुषुप्त शक्तियों को उजागर करने में भी विशेष सहायक है।
यह अभ्यास मानसिक विक्षेपों को दूरकर स्मरण शक्ति को प्रखर बनाने में भी सहायता प्रदान करता है।
निम्न स्थितियों में यह अभ्यास अपरिहार्य रूप से करें1. यदि आपका मन अशान्त एवं चंचल है अथवा आपको क्रोध आ रहा हो,
2. तनावपूर्ण और विघटनकारी परिस्थितियों से सामना करने की संभावना नजर आ रही हो,
3. स्नायविक तनाव, अनिद्रा आदि रोगों से त्रस्त हो, 4. आँखें तथा आँखों की मांसपेशियाँ कमजोर हों, - 5. मन विक्षेपों, व्याधियों एवं वैमनस्य भाव से ग्रसित हो तो यह अति प्रभावकारी प्रक्रिया है।
इसका प्रात:काल में किया गया अभ्यास आपको दैनिक जीवन की समस्याओं का सामना करने हेतु तैयार करता है तथा रात्रि में सोने से पूर्व का अभ्यास गहरी एवं सुखद निद्रा की तैयारी स्वरूप मन को शान्त करता है।
इस तरह अगोचरी मुद्रा वैयक्तिक आदि कई दृष्टियों से अनुकरणीय है। इस मुद्रा से निम्न चक्र आदि संप्रभावित होते हैं