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384... बौद्ध परम्परा में प्रचलित मुद्राओं का रहस्यात्मक परिशीलन सुपरिणाम
• पृथ्वी एवं अग्नि तत्त्व में संतुलन स्थापित कर यह मुद्रा पाचन तंत्र, अस्थि तंत्र, मांसपेशी, शारीरिक संरचना का संतुलन बनाए रखती है। • मूलाधार एवं मणिपुर चक्र को प्रभावित कर यह मुद्रा शरीरस्थ जल, अग्नि, फॉस्फोरस, रक्त, शर्करा, सोडियम आदि का नियमन करती है और तनाव को नियंत्रित कर कार्य शक्ति का विकास करती है। • गोनाड्स एवं एड्रिनल को प्रभावित कर यह मुद्रा रक्तचाप, यकृत, लीवर, गोल ब्लडर, पाचक रस एवं पित्त का संतुलन करती है तथा मासिक धर्म आदि स्त्रित्व सम्बन्धी रोगों का निवारण भी करती है। 63. कोंगौ-रिन्-इन् मुद्रा
जापानी बौद्ध परम्परा में प्रचलित यह मुद्रा सत्य क्षमता की सूचक है। गर्भधातु मण्डल आदि धार्मिक कृत्यों में इसका बहुलता से उपयोग होता है।
विधि
___ दोनों हथेलियों को मध्य भाग में रखें, मध्यमा और अनामिका हथेली के ऊपर मुड़ी हुई, अंगूठा उन दोनों पर मुड़ा हुआ तथा तर्जनी और कनिष्ठिका प्रथम दो जोड़ों पर झुकी हुई एवं अपने प्रतिरूप से सटी हुई रहें तब ‘कोंगौरिन्-इन्' मुद्रा बनती है।
कोंगी-टिन्-इन् मुद्रा