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गर्भधातु-वज्रधातु मण्डल सम्बन्धी मुद्राओं की विधियाँ ...385
सुपरिणाम
• यह मुद्रा अग्नि एवं जल तत्त्व में संतुलन करती है। इससे शरीर जोशयुक्त, स्फूर्तिमय, ओजस्वी, कान्तियुक्त एवं शक्तिशाली बनता है। • मणिपुर एवं स्वाधिष्ठान चक्र को प्रभावित कर यह मुद्रा डायबिटीज, बी.पी., अपच, एसिडिटी, पाचन विकृतियों का निदान करती है। पेट के पर्दे के नीचे स्थित सभी अवयवों के कार्य का नियमन करती है। • तैजस एवं स्वास्थ्य केन्द्र को संतुलित कर यह मुद्रा शारीरिक ऊर्जा एवं जैविक विद्युत का संचय करती है तथा भावनाओं को स्वस्थ बनाती है। 64. लोचन मुद्रा
गर्भधातुमण्डल-वज्रधातुमण्डल से सम्बन्धित यह मुद्रा निम्न प्रकार से होती है-. विधि
हथेलियाँ मध्यभाग में, अंगूठे फैले हुए एवं बाह्य किनारियों से मिले हुए, तर्जनी फैली हुई एवं हल्की सी घुमी हुई, मध्यमा और अनामिका फैली हुई एवं अग्रभाग पर स्पर्श करती हुई तथा कनिष्ठिका सीधी रहने पर लोचन मुद्रा है।।
लोचन मुद्रा