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गर्भधातु-वज्रधातु मण्डल सम्बन्धी मुद्राओं की विधियाँ ...383 कर यह मुद्रा अभ्यासी को महाज्ञानी, कवि, शान्तचित्त, निरोगी एवं दीर्घ जीवी बनाती है। • एक्युप्रेशर पद्धति के अनुसार सुकतान Rickets हिचकी, स्नायुतंत्र की मोच, चर्बी बढ़ने आदि में यह संतुलन का कार्य करती है तथा नाभि को यथास्थान स्थित करती है। 62. कौ-तकु मुद्रा
इस मुद्रा शब्द का सामान्य अर्थ है उत्तम प्रकाश। गर्भधातु मण्डल आदि धार्मिक क्रियाओं से अनुबन्धित यह मुद्रा त्रिशूल की सूचक है जो विघ्न, संकट आदि से रक्षा करती है। विधि
दोनों हाथों में समान मुद्रा होती है। कनिष्ठिका और अंगूठे को हथेली के भीतर मोड़ें, अंगूठा-कनिष्ठिका के ऊपर रहें। तर्जनी, मध्यमा और अनामिका को सीधी रखें। दायें हाथ की तीन अंगुलियाँ बायें हाथ की कोहनी के विपरीत रखें इस प्रकार ‘कौ-तकु' मुद्रा बनती है।
की-तकु मुद्रा