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गर्भधातु - वज्रधातु मण्डल सम्बन्धी मुद्राओं की विधियाँ
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52. जु नि कुशि-जि-शिन् - इन् मुद्रा
भारत में इस मुद्रा का नाम महाबंध मुद्रा है। प्रायोगिक दृष्टि से यह मुद्रा जापान देश के बौद्धधर्मी परम्परा में धारण की जाती है। विद्वद् लेखकों के अनुसार यह सम्पूर्ण शरीर के पवित्रीकरण की मुद्रा है।
विधि
हथेलियों को अधोमुख करते हुए अंगूठे और कनिष्ठिका के अग्रभागों को आपस में मिलायें, तर्जनी और मध्यमा को प्रतिपक्षी हाथ के पृष्ठ भाग पर रखें, अनामिका को दूसरे जोड़ से नीचे की तरफ झुकायें एवं पहले- दूसरे जोड़ को पृष्ठ भाग से मिलायें इस भाँति उपरोक्त मुद्रा बनती है। 63
जु-नि-कुशि-जि-शिन्-इन् मुद्रा
सुपरिणाम
• यह मुद्रा करने से शरीरस्थ अग्नि एवं जल तत्त्व संतुलित होते हैं। यह एनिमिया, पीलिया, पाचन, दृष्टि कमजोरी, मोतियाबिंद, एसिडिटी आदि की तकलीफों का निवारण करती है। • मणिपुर एवं स्वाधिष्ठान चक्र को सक्रिय करते हुए कब्ज, अपच आदि रोगों का भी निवारण करती है। • तैजस एवं स्वास्थ्य केन्द्र को प्रभावित कर यह मुद्रा शरीर, मन और भावनाओं को स्वस्थ बनाती है तथा शारीरिक ऊर्जा एवं जैविक विद्युत का संचय करती है ।