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गर्भधातु-वज्रधातु मण्डल सम्बन्धी मुद्राओं की विधियाँ ...369 बनाकर बुद्धि एवं मन को एकाग्र बनाती है। • विशुद्धि एवं दर्शन केन्द्र को प्रभावित कर यह मुद्रा शारीरिक विकास, चयापचय पाचन एवं आध्यात्मिक उत्थान में सहयोगी बनती है। सप्तम विधि ___ इस सातवें प्रकार में मध्यमा के प्रथम एवं द्वितीय पोर पृष्ठ भाग से स्पर्श करते हुए एवं ऊपर उठे हुए रहते हैं। शेष विधि षष्ठम प्रकार के समान जाननी चाहिए।61
जी-इन् मुद्रा-7 सुपरिणाम . • यह मुद्रा अग्नि एवं जल तत्त्व का संतुलन करते हुए शरीर को तेजस्वी, कान्तियुक्त एवं बलशाली बनाती है। • मणिपुर एवं स्वाधिष्ठान चक्र को प्रभावित कर यह मुद्रा नाभिचक्र की शक्ति में वर्धन एवं संतुलन तथा शरीरस्थ रक्त, जल, सोडियम आदि का नियंत्रण कर कार्य शक्ति का विकास करती है। • एक्युप्रेशर पद्धति के अनुसार इस मुद्रा के प्रयोग से रक्तचाप (B.P.), पित्त, एसिडिटी, प्राणवायु, रक्त, शर्करा एवं गर्मी का संतुलन एवं नियमन होता है।